कलयुग के दशानन से लड़कर सच्ची विजय हासिल करें
अपने अंदर के रावण को जो जलाएंगे सही मायने में वे ही दशहरा मनाएंगे

आज का रावण, आज का राम और सालाना तमाशा देखती जनता
आज दशहरा का दिन है। रामलीला मैदान सजा हुआ है और जैसे ही रावण का पुतला दिखता है भीड़ में जोश की लहर दौड़ जाती है। मगर इस बार का रावण कुछ बदला-बदला सा है ना सिर्फ शक्ल में बल्कि उसके स्वरूप में भी। पेट थोड़ा और बड़ा है, सिर तो अब दस से बढ़कर कई हो गए हैं जिन पर साफ-साफ लिखा है भ्रष्टाचार, घूसखोरी, मक्कारी, झूठे वादे, सत्ता की भूख और जनता की अनदेखी। रावण का ठहाका पहले से और भी अधिक जोरदार हो गया है क्योंकि आज का रावण जनता की जेबों का हरण करता है, योजनाओं और स्कीमों के नाम पर।
सीता अब वह आत्मनिर्भर हो चुकी है, उसे किसी रावण या राम की जरूरत नहीं। आज के रावण के पास सीता का अपहरण करने का समय नहीं, उसके पास जनता की किस्मत में घोटालों की फाइलें तैयार करने का काम है। रावण की लंका अब सोने से नहीं बल्कि कांच और स्टील की ऊंची इमारतों से बनी है। जहां सत्ता की चौखट पर ईमानदारी और नैतिकता की कुर्बानी दी जाती है। वह लंका अब आलीशान दफ्तरों और लक्जरी गाड़ियों में बसी है, जहां रावण अपने घोटालों की योजनाओं पर चर्चा करता है। अब आते हैं आज के राम पर।
आज का राम मीटिंगों और फाइलों में इतना उलझा हुआ है कि उसे यह भी याद नहीं कि उसे रावण से युद्ध करना है। वह राम जो अब पोस्टरों पर ज्यादा दिखता है और जनता के दिलों में कम। न्याय की तलवार हाथ में है मगर उस तलवार को चलाने का तरीका भूल गया है। मीटिंग, प्रेजेंटेशन और चुनावी वादों में खोया हुआ राम जो जनता के दुःखों से ज्यादा अपने नफे-नुकसान की चिंता में डूबा है। अब रामलीला का असली तमाशा शुरू होता है। मंच पर जैसे ही राम तीर चलाता है और रावण के पुतले में आग लगती है, भीड़ ताली बजाती है लेकिन घर जाते ही वही भीड़ सोचती है रावण तो इस साल भी नहीं मरा, वह तो अगले साल फिर से वापस आ जाएगा और शायद दोगुना ताकतवर। हर साल रावण का पुतला जलता है पर असली रावण जस का तस बना रहता है। भ्रष्टाचार, सत्ता की भूख, गरीबी और धोखाधड़ी का रावण हर साल नया रूप लेकर वापस आता है।
जनता हर साल वही पुराना खेल देख रही है, वही पुतले जलाए जा रहे हैं, वही ताली बजाने का कार्यक्रम। रावण जलता है, पटाखे फूटते हैं और जनता अपनी जिंदगी में वापस लौट जाती है पर हकीकत यह है कि असली रावण हमारे बीच बैठा है, बिना किसी डर के हंस रहा है और जनता? वह बस तमाशबीन बनी हुई है। जनता का असली तमाशा यही है कि हर साल वही खेल दोहराया जाता है नए वादे, नए नारे, नए पुतले। पर रावण बच निकलता है, हर बार।
भ्रष्टाचार, सत्ता की मक्कारी और जनता की अनदेखी का रावण हर साल और ताकतवर हो जाता है और जनता बस ताली बजाने के लिए वहां खड़ी रहती है, अपनी उम्मीदों के ताजमहल को गिरते हुए देखते हुए। तो इस दशहरे पर रावण का पुतला जलाकर आप संतुष्ट हो सकते हैं, मगर असली सवाल यही रहेगा क्या असली रावण जलाया गया या वह फिर से अगले साल का तमाशा देखने के लिए तैयार बैठा है? क्योंकि राम-रावण के युद्ध का असली मैदान अब मंचों या युद्धभूमि में नहीं बल्कि सत्ता के गलियारों और जनता की लाचारी में सिमट गया है।
यदि दशहरे की अग्नि में हम केवल पुतले जलाएँ और भीतर के दोष जीवित रखें, तो विजयादशमी केवल उत्सव बनकर रह जाएगी। असली विजय तब होगी जब हम मोबाइल मोह से अनुशासन, फेक न्यूज से सत्य, उपभोग से संयम, नशे से जागरूकता, राजनीति से पारदर्शिता, तकनीक से नैतिकता की ओर बढ़ें और भ्रष्टाचार, घूसखोरी, मक्कारी, चालाकी एवं झूठे वादे से दूर रहें।
राजेश कटियार,कानपुर
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