कानपुर,अमन यात्रा । हत्या के एक मामले में चार दशक बाद जीवित बचे दो आरोपितों को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुंदर लाल ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। चार्जशीट समेत कई दस्तावेज आरोपों को साबित नहीं कर सके। बचाव पक्ष के अधिवक्ता दिनेश कुमार शुक्ला बताते हैं कि पुलिस ने गलत तरीके से मुल्जिम बना दिया था। मामले में विवेचना करने वाले विवेचक को भी कोर्ट में पेश नहीं किया गया। वादी ने अपनी पहली गवाही में घटना का जिक्र किया, लेकिन तीसरी गवाही में सपोर्ट नहीं किया। इस पर चश्मदीद की उपस्थिति को संदिग्ध मानते हुए कोर्ट ने आरोपितों को बरी कर दिया।

यह था मामला

कोतवाली के हाता कमाल खां में 24 नवंबर 1978 की सुबह आठ बजे अब्दुल रशीद की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मामले में पुलिस ने अब्दुल के बेटे तौफीक अहमद को चश्मदीद बनाते हुए उनकी तहरीर पर मुकदमा किया था। अकील, रहीम, इरफान, मो. अहमद उर्फ बब्लू और इरशाद को हत्या का आरोपित बनाया गया। सुनवाई के दौरान तीन आरोपितों की मौत हो गई। जीवित बचे आरोपित इरफान और मोहम्मद अहमद को न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।

1981 में हुई थी पहली गवाही

तौफीक की पहली गवाही 4 मई 1981 को हुई थी। इसके बाद दूसरी गवाही 10 मई 1985 को और तीसरी गवाही 22 अक्टूबर 2019 को हुई थी। तौफीक ने अपनी गवाही में कहा था कि उनके परिवार की बाबू पहलवान के परिवार से पुरानी रंजिश है, जिसमें पहले भी तीन हत्याएं हो चुकीं हैं। घटना वाले दिन उनके पिता छोटी ईदगाह की तरफ जा रहे थे तभी अचानक आरोपित पहुंचे। वे हाथों में पिस्टल लिए थे। उन्होंने पिता को गोली मार दी।

कोर्ट ने खत्म किया स्टे, 38 साल बाद तय हुए आरोप

इस मामले में एक आरोपित इरफान पर 38 साल बाद आरोप तय हुए। उसकी ओर से किशोर साबित करने का प्रार्थना पत्र दिया गया था जिसे लेकर हाईकोर्ट में मामला चला। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने इस मामले में 18 सितंबर 2019 को स्टे खारिज करते हुए सुनवाई शुरू की थी। 18 सितंबर 2019 को इरफान का चार्ज बना।