देर रात तक होलिका दहन की मस्ती में डूबे होरियारों की टोली सोमवार सुबह फिर हाथों में रंग, गुलाल लेकर निकल पड़ी। होली की सुबह से ही जमकर अबीर, गुलाल उड़ा और लोगों ने खुशी-खुशी एकदूसरे को रंग लगाया। सुबह सबसे पहले बच्चों की टोलियां पिचकारी लेकर गलियों में निकलना शुरू हुई।किसी ने घर के बाहर ही ड्रम में पानी भर कर रंग बना लिया तो किसी ने बाल्टी और टब में रंग को घोला। बच्चों के उत्साह को देख कुछ देर बाद ही युवा और बड़े भी घरों से बाहर आ गए। लोगों ने होली खेलना शुरू किया तो आसमान सतरंगी हो गया।

ढोलक-मंजीरा लेकर निकली फाग टोलियां

अनवरगंज में सुबह से ही ढोलक, मंजीरा लेकर फाग गायकोें की टोली निकल पड़ी। होली की बधाई देेने वाले गीतों को लेकर वह घर-घर गए। सुबह-सुबह इन गीतों की मधुर तान से शहरवासियों की नींद खुली। होली पर उनके लिए इससे अच्छा तोहफा और क्या हो सकता था। जहां एक ओर कानपुर नगर व देहात में फाग गाकर लोगों को होली की बधाई दी गई वहीं कुमाऊनी समाज के लोग टोली बनाकर पहाड़ी होली गीत गाते हुए लोगों के बीच पहुंचे। इस टोली ने इंद्रानगर, केशवपुर, नवाबगंज, ग्वालटोली व खलासी लाइन में होली गीतों की ऐसी छठा बिखेरी कि माहौल संगीत में सराबोर हो गया। टोली में ललित मोहन पाठक, नवीन चंद्र पांडेय, पूरन चंद्र पांडेय, देवेंद्र सिंह बिष्ट, मुकेश सिंह राणा, ब्रिज मोहन पाठक, राजेश पाठक, हरीश जोशी, दीपक जोशी, हेम चंद्र पाठक, गोविंद चंद्र जोशी, श्याम लोहानी, हिमांशु तिवारी, ललित उपाध्याय, हरीश जोशी व अमित तिवारी शामिल रहे।

गणेश स्तुति से शुरू हुआ फाग

रंगों के त्यौहार में जहां हर कोई रंगने को बेकरार था वहीं फाग मधुर ध्वनि ने इस अवसर पर चार चांद लगा दिए। पहाड़ी होली ने शहर में जब अपनी अद्भुत छठा बिखेरी तो हर कोई उसके साथ हो लिया। पहाड़ी होली की खासियत यह है कि गणेश स्तुति से यहां फाग का आगाज होता है। ढोलक, हारमोनियम, मंजीरा जैसे वाद्य यंत्रों के साथ यह गीत घर आंगन तक पहुंचे तो लोग अपने पैरों को थिरकने से नहीं रोक सके। इन गीतों के साथ अबीर व गुलाल जब नभ में छाया तो इस सतरंगी माहौल में हर कोई डूबने को बेकरार नजर आया।

पहले हर मोहल्ले में होती थी पांच से छह टोलियां

डीएवी डिग्री काॅलेज के ललित कला विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर व होली विषय पर लिखी गई उपला कला के लेखक डाॅ. हृदय गुप्ता ने बताया कि पहले घर-घर में फाग की आवाज गूंजा करती थी। हर मोहल्ले में पांच से छह टोलियां हुआ करती थीं। अब पुराने लोग नहीें रहे जो फाग गाया करते थे इसलिए टोलियां भी कम हो गई हैं। जो टोलियां हैं वह भी सिमटकर बहुत छोटी हो गई हैं। नवाबगंज मेें तीन दिन लगातार होती होती है। तीनों दिन जमकर फाग गाए जाते थे। तीन दिन होली खेलने की परंपरा तो आज भी कायम है लेकिन फाग बहुत कम हो गया है।