प्राणायाम फेफड़ों के लिए संजीवनी : डॉ. सूर्यकांत
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज द्वारा आयोजित साप्ताहिक व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत आज पल्मोनरी रोग और इनका योगिक प्रबन्धन विषय पर चर्चा की गई। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी, विभागाध्यक्ष, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ ने विषय से संबंधित विभिन्न तथ्यों पर प्रकाश डाला।

कानपुर,अमन यात्रा। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज द्वारा आयोजित साप्ताहिक व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत आज पल्मोनरी रोग और इनका योगिक प्रबन्धन विषय पर चर्चा की गई। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी, विभागाध्यक्ष, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ ने विषय से संबंधित विभिन्न तथ्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जिम के अभ्यास से शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, उसी प्रकार प्राणायाम के अभ्यास से फेफड़े मजबूत होते हैं। कोरोना काल में फेफड़ों के महत्व को लोगों ने जाना, लोगों ने जाना कि इम्यूनिटी क्या होती है। लोगों ने आयुष को भी जाना और योग एवं प्राणायाम को भी। इम्यूनिटी को बढ़ाने में योग एवं प्राणायाम का महत्व अद्वितीय है। हम सभी जानते हैं कि टी.बी. और निमोनिया आदि संक्रामक रोग हैं। टी.बी. रोगियों में 80 प्रतिशत रोगी फेफड़ों की टी.बी. के होते हैं। अतः भारत वर्ष को टी.बी. मुक्त बनाने के लिए फेफड़ों को मजबूत किये बिना संभव नहीं है।
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि प्राणायाम हमारी प्राचीन पद्धति है, परंतु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि योग, प्राणायाम आदि सहायक चिकित्सा पद्धतियां हैं। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक अवस्था का मधुमेह, जिसमें पैंक्रियाज की बीटा सेल ने पूरी तरह से इंसुलिन का स्रावण बंद नहीं किया है तो इसे योग प्रणायाम आदि से ठीक किया सकता है। परंतु बीटा सेल द्वारा इंसुलिन का स्रावण बंद हो जाने के बाद योग द्वारा मधुमेह को ठीक करने का दावा करना सर्वथा भ्रामक है।
मनुष्य बिना भोजन एवं जल के तीन सप्ताह तक जीवित रह सकता है, परंतु बिना आक्सीजन के तीन मिनट भी जीवन संभव नहीं है और आक्सीजन का आधार है हमारी श्वसन प्रक्रिया। सामान्य ढंग की श्वांस से लगभग 500 एम.एल. वायु ही अंदर जाती है। प्राणायाम के दौरान 1000 से 1500 एम.एल. तक वायु को हम धारण करते हैं। अतः फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए नियमित पांच मिनट का प्राणायाम अवश्य करना चाहिए।
व्याख्यान श्रृंखला के समन्वयक डॉ. राम किशोर ने बताया कि वर्तमान में ’’बी.एस.सी. इन योग’’ कोर्स संस्थान में संचालित हैं तथा अगामी शैक्षिक सत्र 2020-23 से एम.एससी./एम.ए. इन योग भी संचालित होगा, जिसमें अन्तिम वर्ष के छात्रों को यू.जी.सी-नेट की लिए अतिरिक्त कक्षाएं चालाई जायेगी। कार्यक्रम अध्यक्ष प्रति कुलपति प्रो. सुधाीर कुमार अवस्थी ने कहा कि भारत वर्ष की प्रचीन योग विद्या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उपयोगी हैं। इसे प्रत्येक विषय के विद्यार्थियों का अपनाना चाहिए।
संस्थान के सहायक निदेशक डा0 मुनीश रस्तोगी, डा0 वर्षा प्रसाद, आदर्श श्रीवास्तव, कु0 हिना वैश, कु0 आकांक्षा बाजपेयी, डा0 नंद लाल जिज्ञासु, कुसुम पाण्डेय आदि का व्याख्यान में पूर्ण सहयोग रहा। अन्त में संस्थान के निदेशक डा. दिग्विजय शर्मा जी ने कार्यक्रम में जुडे़ सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।
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