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भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहॉ सत्तर फीसदी लोग किसी न किसी रूप में कृषि से जुडे. हुए हैं। जन्तु जगत में मनुष्य का जीवन जन्तुओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। किसानों का अधिकांश जीवन जन्तुओं के सहयोग पर निर्भर रहता है। केंचुआ एक ऐसा जन्तु है जो कृषक समाज का निस्वार्थ रूप से सहयोग कर अपना दायित्व पूरा करता है। यही कारण है कि उसे किसानों का मित्र कहा जाता है।
केंचुए :फेरेटिमाः बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, इसके अतिरिक्त एक दूसरे प्रकार का केंचुआ, जिसे यूटाइफस कहते हैं, पाया जाता है। वर्षा ऋतु में पानी बरसने के बाद केंचुए अपने बिलों से बाहर निकल कर गीली मिट्टी पर रेंगते दिखाई देते हैं। ये गीली मिट्टी में अपने बिल बनाकर रहते हैं और बिलों में पानी भर जाने के कारण बाहर निकल कर आ जाते हैं।
प्रायः देखा जाता है कि जहॉ मिट्टी गीली रहती है, जैसे- उद्यान, खेत और वृक्षों के नीचे की मिट्टी में छोटे-छोटे बिलों के मुंह के पास मिट्टी की गोलियों का छोटा सा ढेर या घुमावदार लम्बी-लम्बी बेलनाकार मिट्टी के ट्यूब का ढेर होता है। यह केंचुए का मल होता है। इससे केंचुए के आवास का पता चल जाता है।
केंचुआ गीली मिटटी को खाकर सुरंग बनाकर 30-50 से.मी. तक गहराई में रहते हैं। मिटटी का गीला रहना तथा सभी भोज्य पदार्थों का उपस्थित होना उनके जीवित रहने के लिए आवश्यक है। अधिक गर्मी में ये अधिक गहराई में 3 मीटर तक चले जाते हैं, जहॉ अधिक नमी उपलब्ध हो जाती है।
किसानों से मित्रता के स्वरूपः- केंचुए अपनी सुरंगें बनाते समय मिट्टी खाते चले जाते हैं, जिसे ये मल की गोलियों के रूप में बराबर बाहर फेंकते रहते हैं। इस प्रकार खेतों उद्यानों आदि की मिट्टी बराबर पलटती रहती है और अन्दर की मिट्टी बाहर आती रहती है। जिससे औसतन प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर 4000 से 9000 कि.ग्रा. मिटटी पलट जाती है। इससे खेत की मिट्टी पोली हो जाती है जिससे फसलों के पौधों की जड.ों को श्वसन हेतु वायु भली प्रकार मिलती रहती है। इससे फसलें अच्छा उत्पादन देती हैं।
फेरेटिमा अपना उत्सर्जी पदार्थ मिट्टी में डालते रहते हैं जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ. जाती है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ.ती है।
केंचुए अपने भोजन के रूप में वनस्पतियों के भाग जैसे मिट्टी पर गिरी हुई पत्तियॉ,पुष्पों एवं फलों के अंश खाते हैं और इन्हें खींच कर अपने बिलों में ले जाते हैं जो मिटटी में ह्यूमस बनाते हैं । यह खाद का काम करता है इससे मिटटी की उपजाऊ शक्ति बढ.ती है।
केंचुए के मल में खाई हुई महीन मिटटी के साथ पाचक रसों से प्रभावित हुई मिटटी एवं पचने के बाद बचे हुए भोजन के अवशेष होते हैं। इसमें मिटटी के कैल्शियम, पोटेशियम, मैगनीशियम, फास्फोरस, तथा नाइट्रेट के लवण पाये जाते हैं। ये भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
रामसेवक वर्मा
विवेकाननद नगर पुखरायॉ कानपुर देहात उ.प्र.209111
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