गर्भावस्था के दौरान पोषण का महत्व है बहुत
गर्भावस्था मानव जीवन में जितनी महत्वपूर्ण एक महिला के लिए है उतनी ही महत्वपूर्ण पुरुष के लिए भी है। इसके 2 वैज्ञानिक कारण हैं पहला कारण यह है कि जिस पुरुष से गर्भ धारण किया गया है उसके वंश विस्तार के लिए आने वाले संतान स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है।
गर्भावस्था मानव जीवन में जितनी महत्वपूर्ण एक महिला के लिए है उतनी ही महत्वपूर्ण पुरुष के लिए भी है। इसके 2 वैज्ञानिक कारण हैं पहला कारण यह है कि जिस पुरुष से गर्भ धारण किया गया है उसके वंश विस्तार के लिए आने वाले संतान स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है। और दूसरा यह कि जब तक माता एवं पिता दोनों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा तब तक आने वाली संतान के अनुवांशिक गुणों एवं स्वास्थ्य की सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकती।
विकसित देशों में आज गर्भधारण से पहले माता के स्वास्थ्य के साथ-साथ पिता के स्वास्थ्य एवं खानपान जीवन शैली तथा आने वाली संतान की परवरिश के लिए पहले से दंपत्ति एवं परिवार तैयार रहता है इस बारे में जागरूकता भी अधिक है लेकिन अभी विकासशील देशों में इस मुद्दे पर जिक्र नहीं किया जा रहा है। देखा जाए तो संतान उत्पत्ति वंशानुगत धरोहर को आगे बढ़ाना तो है ही दूसरे शब्दों में दो शरीर मिलकर नए शरीर की उत्पत्ति भी करते हैं आता है यह अत्यंत आवश्यक है कि एक नए जीव को जन्म देने से पहले उसके स्वास्थ्य की थोड़ी सी परवाह कर ली जाए और अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित कर लिया जाए। आज इस मुद्दे पर चर्चा करने का उद्देश्य मेरा यही है कि हमारे आने वाली संताने संख्या में भले ही कम है लेकिन वह शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ एवं बीमारियों से लड़ने एवं बचने के लिए सक्षम हो तथा अपने आने वाले जीवन की जिम्मेदारी अच्छे से निभा सके कम से कम अपने शरीर का दायित्व उठा सके इतनी सक्षम हो शरीर स्वस्थ हो मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता उत्तम हो ताकि जन्म देने वालों को भी संतुष्टि हो। आइए समझते हैं गर्भावस्था में कौन से पोषक तत्व महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं एक स्वस्थ शरीर उत्पन्न करने के लिए।
गर्भावस्था महिला के जीवन में वह समय है जिस वक्त शरीर कुछ महीनों के लिए बहुत तेजी से अपने शरीर कि सभी कोशिकाओं को संख्या में और आकार में बढ़ा रहा होता है अर्थात गर्भावस्था के दौरान शरीर का विकास अधिक तेजी से होता है शरीर के सभी अंग जिस में रक्त गर्भाशय हड्डियां मांसपेशियां मस्तिष्क आदि सभी का विकास हो रहा होता है। विकास की इस अंतराल में प्रोजेस्टेरोन हार्मोन शरीर में वसा को संग्रहित कर शरीर को गर्म रखने एवं बच्चे को विकसित होने में मदद करता है तथा ऊर्जा एवं मांसपेशियों को सरलता से काम करने के लिए मदद करता है। एस्ट्रोजन इ मात्रा बढ़ने से शरीर में पोषक तत्व का पाचन एवं संग्रहण बढ़ जाता है जिससे गर्भाशय तथा अन्य अंगों के विकास में मदद मिलती है।
प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन मिलकर बच्चे के जन्म के बाद मां के शरीर से दूध विसर्जित करने में भी मदद करते हैं। शरीर में सभी हारमोंस सही मात्रा में बनते रहे उसके लिए भोजन में सभी प्रकार के प्रोटीन एवं अमीनो एसिड्स सही मात्रा में होना बहुत जरूरी है। इस दौरान शरीर का वजन बढ़ना बहुत अच्छा रहता है अतः इसे गलत ना समझा जाए। उत्तम वजन वृद्धि ही बच्चे की शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण है कम से कम आधा किलो वजन महिला के स्तनों का 600 ग्राम प्लेसेंटा का 3 से 3.5 किलोग्राम बच्चे का लगभग 1 किलोग्राम एमनीओटिक फ्लूइड 1 किलोग्राम के आस पास, ब्लड वॉल्यूम एक से 1.5 किलो एक्सट्रेसेल्यूलर फ्लुएड और कम से कम 1किलो गर्भाशय का वजन बढ़ना चाहिए।
अत्यधिक वजन बढ़ने से भी बच्चे के विकास में दिक्कत आ सकती हैं, अतः खानपान के साथ शारीरिक क्रियाओं का ध्यान रखना भी अत्यंत आवश्यक है खाना खाएं लेकिन उसका पचना भी उतना ही आवश्यक है और सही प्रकार का खाना एवं सभी प्रकार के पोषक तत्वों का भोजन में उपस्थित होना भी महत्वपूर्ण है। कम वजन की महिलाएं भी एक अविकसित शरीर को जन्म देने का कार्य करती हैं अतः इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि वजन सही मात्रा में गर्भावस्था के दौरान लगातार बढ़ता रहे। एक साधारण वजन वाली महिला को संपूर्ण गर्भावस्था में 9 से 12 किलो वजन बढ़ाना जरूरी है तथा पहले 3 महीनों में 1 से 2 किलो 3 से 6 महीनों में 5 से 6 किलो और आखिरी 3 महीनों में 6 से 7 किलो औसत वजन बढ़ना अनिवार्य है। एक गर्भस्थ महिला के भोजन में ऊर्जा प्रदान करने वाले पोषक तत्व जिसमें कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन और वसा है मुख्य रूप से सम्मिलित होने चाहिए लेकिन इन पोषक तत्वों के पाचन के लिए भोजन में विटामिन मिनरल्स एवं फाइटोकेमिकल्स का होना भी बहुत जरूरी है जोकि फलों सब्जियों मुख्यतः हरी सब्जियों में आसानी से पाए जाते हैं।
गर्भावस्था में आयरन फोलिक एसिड विटामिन ए, कैल्शियम, विटामिन डी, मुख्य पोषक तत्वों में गिने जाते हैं क्योंकि इनके बिना संतान के शरीर का ढांचा सही प्रकार से विकसित नहीं हो पाता। भोजन एक वक्त में ज्यादा नहीं खाना है। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकिन कई बार खाना चाहिए जिससे कि भोजन को पचाने में असुविधा ना हो और गर्भस्थ महिला को अपचय जैसी परेशानियों का सामना ना करना पड़े। ऊर्जा प्रदान करने वाले पोषक तत्वों के पाचन में विटामिन सी तथा प्रोटीन बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। अब मैं अलग अलग पोषक तत्व के कार्यों को 11 वाक्य में व्याप्त करूंगी ताकि संतान की माता और पिता दोनों ही अपने आने वाली संतान की अच्छी देखभाल कर पाए।
कार्बोहाइड्रेट्स जो की मुख्य तौर पर अनाज दालों और फलों सब्जियों से मिलते हैं शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करते हैं कुछ आसानी से पच जाते हैं कुछ को पचाने में थोड़ा वक्त लगता है इसलिए इन्हें थोड़ी थोड़ी मात्रा में थोड़ी थोड़ी देर में लेना चाहिए एक वक्त में ज्यादा नहीं लेना चाहिए। गर्भावस्था में पाचन तंत्र को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि एक ही वक्त में वह बच्चे के लिए भी गैस्ट्रिक जूस बना रहा होता है और उसी वक्त में मां के शरीर के लिए भी अतः एक वक्त में ज्यादा भोजन नहीं देना है। वसा कोशिश करें जल्दी पचने वाला वसा भोजन में सम्मिलित करें जैसे कच्चा घी या क्रीम। गर्भावस्था के दौरान प्रोटीन के लिए जो महिलाएं अंडे मांस मछली का प्रयोग करती है कोशिश करें सफाई का ध्यान रखें तथा बीमार पशुओं और पक्षियों का मांस ना खाएं। जो महिलाएं शाकाहारी हैं वह दाल तिलहन दलहन तथा सूखे मेवे अपने भोजन में कुछ मात्रा में ऐड क अपने भोजन में कुछ मात्रा में रोजाना शुरू कर सकती हैं जितना वह पचा सके। किसी भी प्रकार के सिंथेटिक या रासायनिक फार्मूले से तैयार सप्लीमेंट्स का प्रयोग ना करें। किसी भी पोषक तत्व की भोजन में कमी बच्चे में शारीरिक या मानसिक कमी का कारण बन सकती है अतः सभी प्रकार के पोषक तत्वों को अपने आहार में सम्मिलित करने का प्रयास करें सभी प्रकार के फलों को खाएं सभी सब्जियों को बारी-बारी खाएं आहार में शामिल करें।
यदि माता एनीमिक है अर्थात गर्भस्थ महिला में खून की कमी है तो यह बच्चे के दिमाग में कमी का कारण बन सकता है तथा शरीर के बाकी अंगों के विकास में भी रुकावट पैदा कर सकता है। मां के शरीर में कैल्शियम की कमी होने से बच्चे का शारीरिक ढांचा पूर्णतया विकसित होने में परेशानी हो सकती है। जिंक की कमी होने से याददाश्त संबंधी मानसिक डिफेक्ट आ सकते हैं तथा विटामिन डी की डेफिशियेंसी बच्चे में जन्म के समय वजन कम होने का कारण हो सकते हैं। जो पिता सिगरेट या शराब का सेवन करते हैं उनके स्पर्म का मुंह खुला होने के कारण बच्चे में ओरोफैरिंजीयल क्लेफ्ट होने की संभावना बढ़ जाती है। अर्थात चेहरे में विकृति आने की संभावना रहती है अतः गर्भधारण से पहले कम से कम प्रत्येक पिता को 6 महीने पहले से सिगरेट तथा शराब का सेवन करना छोड़ देना चाहिए। प्रत्येक प्रेगनेंसी में कम से कम 2 से 3 साल का अंतराल होना चाहिए।
गर्भधारण से कम से कम 2 महीने पहले से फॉलिक एसिड एवं आयरन से भरपूर आहार का सेवन करना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि गर्भावस्था के पहले 3 दिन बच्चे का मस्तिष्क एवं रीड की हड्डी तथा उससे जुड़े नसे बनाने में अहम भूमिका अदा करता है उस वक्त उन 3 दिनों में आयरन और फोलिक एसिड की आवश्यकता अत्यधिक होती है। मां में विटामिन ए की डेफिशियेंसी बहुत सारे संक्रामक रोगों को न्योता दे सकती हैं अतः फलों का सेवन अधिक मात्रा में करते रहना अत्यंत अनिवार्य है। एक गर्भवती महिला के भोजन में सभी प्रकार के पोषक तत्वों का सम्मिलित होना उतना ही अनिवार्य है जितना कि शिशु के सभी अंगों के विकसित होने के लिए सभी प्रकार के मेटेरियल को उपलब्ध कराने के लिए कच्चा माल होना। अतः भोजन में कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन विटामिन मिनरल्स फाइटोकेमिकल्स इलेक्ट्रोलाइट्स सभी पोषक तत्व सही संतुलन में होने चाहिए किसी एक की भी कमी किसी ना किसी कमी को जन्म देती है।