गीत-संगीत के साथ बजरंग रामलीला में भव्य सीता स्वयंवर सम्पन्न
राम विनय गुण के अवतार, गुरुवर की आज्ञा शिरधार, सहज भाव से शिव धनुष तोड़ा, जनकसुता संग नाता जोड़ा
पुखरायां कानपुर देहात। जनकराज का कठिन प्रण, सुनो-सुनो हर कोई, जो तोड़े शिव धनुष को, वो सीता पति होई। को तोरे शिव धनुष कठोर, सबकी दृष्टि राम की ओर, राम विनय गुण के अवतार, गुरुवर की आज्ञा शिरधार, सहज भाव से शिव धनुष तोड़ा, जनकसुता संग नाता जोड़ा….कुछ ऐसे ही गीत-संगीत के साथ मंचीय रामलीला में भव्य सीता स्वयंवर हुआ। शिव धनुष भंग कर सीता राम के विवाह की खुशी मनाई गई। रंगमंच पर धनुष भंग लीला का मनमोहक मंचन हुआ।
सीता स्वयंवरके लिए राजा जनक के दरबार में पहुंचे दूर-दूर के राजकुमार पहुंचते हैं, जब कोई शिव धनुष को नहीं तोड़ पाया तो राजा जनक निराश हो जाते हैं। इसके बाद विश्वामित्र से आज्ञा लेकर श्रीराम आगे बढ़े और शिव धनुष को तोड़ दिया। जिसके बाद सीता का विवाह श्रीराम के साथ संपन्न हुआ। बजरंग रामलीला समिति सुखाई तालाब में चल रही रामलीला में इस तरह के दृश्य दर्शाए गए थे। इसमें बताया गया राजा जनक ने सीता विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया था। शिव धनुष टूटते ही शिव भक्त परशुराम का दरबार में प्रवेश होता है। वे कहते हैं, मूर्ख जनक जल्दी बता यह धनुष किसने तोड़ा है, इस भरे स्वयंवर में किसने सीता से नाता जोड़ा है, जल्दी उसकी सूरत दिखला वरना चौपट कर डालूंगा, जितना पृथ्वी पर राज तेरा सब उलट-पुलट कर डालूंगा। तब श्रीराम कहते है कि नाथ संभुधन भंजनिहारा होइहि केउ एक दास तुम्हारा लेकिन परशुराम के तेवर देख लक्ष्मण उनसे उलझ जाते है। क्रोधित हो परशुराम कहते है कि बालकु बोलि बधउं नहिं तोही केवल मुनि जड़ जानहि मोही। इस पर लक्ष्मण कहते है कि इहां कुम्हड बतिया कोउ नाहि जे तरजनी देख मरि जाहीं। श्रीराम ने परशुराम को समझा कर शांत किया।
श्रीराम के रुप में मोहित बजाज ने सभी का दिल जीता। विवाह के बाद सीता संग श्रीराम अयोध्या लौटे। महाराज जनक अपनी बेटी सीता को विवाह के बाद विदा करते हुए भावुक हो गए और पांडाल में चारों तरफ सन्नाटा छा गया। अयोध्या के महाराजा दशरथ द्वारा गुरू वशिष्ठ और अपने मंत्री आदि से विचार विमर्श करके भगवान श्रीराम को अयोध्या का राजा बनाने का निर्णय किया।
परशुराम-लक्ष्मणसंवाद ने किया रोमांचित
बजरंग रामलीला समिति में सीता स्वयंवर का भव्य मंचन किया गया। स्वयंवर में सभी राजा धनुष उठाने के प्रयास करते हैं, लेकिन वे उसे हिला भी सके। राजा जनक यह देखकर सभी को भला-बुरा कहते हैं, इस पर लक्ष्मण कहते हैं कि ये सूर्यवंश के आफ्ता में करता कुछ अभिमान नहीं, लेकिन ये मेरी आदत है, सह सकता अपमान नहीं, भरी सभा में मिथिला पति ये क्या उच्चार रहे, इस बूढ़े पुराने धनुष पर क्यों इतना अहंकार रहे। उन्होंने कहा कि सच्चे योद्धा सच्चे क्षत्रिय अपमान नहीं सह सकते हैं, जिनको सुनने का ताव नहीं, वो चुप कैसे रह सकते हैं। इन पंक्तियों पर दर्शकों वाह-वाह कह उठे। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर राम उसे उठा कर प्रत्यंचा चढ़ा रहे थे कि धनुष टूट जाता है। सीता राम के गले में जयमाला डालती है। धनुष की प्रलयंकारी ध्वनि सुन कर भगवान परशुराम का वहां प्रवेश होता है, क्रोधवेग में उनकी लक्ष्मण के साथ गर्मागर्म वार्ता का भी दर्शकों ने आनंद लिया। क्रोध में परशुराम कहते हैं क्षत्रियों का कर चुका हूं 21 बार विध्वंस मैं, नाम परशुराम है, क्षत्रियों का मिटा चुका अंश मैं। इस दौरान कमेटी के सभी सदस्य मौजूद रहे।