कविता
वो चिड़िया, जो आज भी याद आती है : रामसेवक वर्मा
वो चिड़िया,
जो आज भी याद आती है।
सोते – जागते
हर पल मुझे सताती है।
लंबी – सी चोंच, लाल-लाल पंख।
बीच में कुछ सफेद धब्बे।
बिल्कुल भोली,
चोंच इतनी मजबूत कि,
काठ में बनाती थी खोली।
सिर पर एक लंबी सी कलगी।
कागज के फूल सी, मुड़ी हुई थी हल्की।
बेफिक्र मेरे सामने, दाने चुग रही थी।
बीच-बीच में वह मुझ पर, नजर रख रही थी।
कुर्सी पर बैठा अपने आंगन में,
मैं मन में कुछ सोच रहा था।
उसकी मासूमियत को,
बड़े गौर से देख रहा था।
बचपन की शरारत,
उस वक्त मुझे सूझ गई।
पत्थर का एक टुकड़ा उसके सिर में लगा,
और हमेशा के लिए वह जमीन पर सो गई।
फिर मेरे मन में एक चेतना जाग उठी।
और मैं देर तक सोचता रहा।
बेवजह वह शिकार हो गई।
आखिर, उसका दोस्त क्या था?
क्यों उसे जिंदगी से हाथ धोना पड़ा।
वह तो बिल्कुल निर्दोष थी।
मुझ पर विश्वास कर रही थी।
तभी तो मेरे सामने,
मन से दाना चुग रही थी।
क्या वह विश्वासघात नहीं था?
यह आज भी मैं सोच रहा हूं।
और प्रायश्चित करने का प्रयास कर रहा हूं।।
रामसेवक वर्माविवेकानंद नगर पुखरायां कानपुर देहात उत्तर प्रदेश 209111 , फोन नं०- ९४५४३४४२८२