कविता

सर्द मौसम

आबरू शिशिर की, लूटने बरसात आ गई । कास्तकारों के मरने की, अब बात आ गई ।।

आबरू शिशिर की, लूटने बरसात आ गई ।
कास्तकारों के मरने की, अब बात आ गई ।।
बतलाती है विक्षोभ को, सर्द मौसम की आंधियां ।
मन चाहता है धूप को, ओढ़ लेती है परछाइयां ।।
जीवन में कभी न देखी, इस तरह की हवाएं ।
बुजुर्गों से पूछो तो, कहते हैं याद न आए ।।
रेशमी में गद्ददो  में,  दुबके हैं महाजन ।
ठंड का दर्द तो, सहते हैं निराजन ।।
रोजी का ठिकाना नहीं, ठिठुरते इन विचारों को  ।
भोजन को टका नहीं, कैसे दे देनदारो को I ।
कंबल, रजाई और आग से, रुकती नहीं सर्दियां I
साल, स्वेटर और जैकेट, सब बेकार है बर्दिया I ।
फुर्सत की चौखट में है, मूंगफली और अंडे।
ठंड इतनी है कि, कुछ काम न आते हथकंडे I I
        मौलिक एवं स्वरचित
रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर कानपुर देहात उत्तर प्रदेश
फोन नंबर- 9454344282
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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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