जल ही जीवन का आधार है

 

पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जीव जन्तुओं और वनस्पतियों के लिए जल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जल के बिना कोई भी जैविक क्रिया सम्भव नहीं होती है। मानव शरीर का सत्तर प्रतिषत भाग जल से बना है और पौधौं में 40 प्रतिषत पानी होता है। जल के माध्यम से पोषक तत्व पौधों के सभी भागों में पहुँच जाते हैं और उन्हें हरा बनाए रखते हैं। जल के बिना जीवन संभव नहीं क्योंकि जल ही जीवन का आधार है।

पर्यावरणीय असन्तुलन और जलवायु परिवर्तन के कारण जल की उपलब्धता में बड.ा परिवर्तन आया है जिससे पृथ्वी पर पीने के पानी की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है और प्राकृतिक हरियाली भी नष्ट हो रही है। नदियों का पानी का स्तर या तो बहुत कम हो गया है या फिर पूरी तरह सूख चुकी हैं। यही कारण है कि नहरों में पानी नजर नहीं आता, फलस्वरूप तालाब,पोखर और झीलें भी सूख चुके हैं।

दिनोंदिन वर्षा का स्तर भी कम होता जा रहा है जिससे भूमिगत जल का तल बहुत नीचे जा चुका है। इससे कुयें  गुजरे जमाने की चीज हो गये हैं। अधिकांष हैण्डपम्प भी गर्मियों में सूख जाते हैं, अगर नहीं भी सूखे तो मुष्किल से पानी निकलता है। एक सर्वे के अनुसार अगले 20 वषों में पीने का पानी बिल्कुल समाप्त हो जाएगा जिससे प्राणिजगत मुष्किल में पड. जाएगा।

प्राचीन काल में जल को एक तत्व समझा जाता था, किन्तु 1781 ई0 में हैनरी कैवेडिष ने यह सिद्व कर दिया कि जल हाइड्रोजन तथा आक्सीजन का एक यौगिक है जिसमें हाड्रोजन तथा आक्सीजन सदैव एक निष्चित अनुपात (2 : 1) में रहते हैं। इसका अणु सूत्र भ्2व्  होता है जो हाइड्रोजन का मोनो आक्साइड है। जल का अणुभार 18 होता है।

जल एक सर्वोपयोगी प्राकृतिक पदार्थ है। इसके समान न तो कोई यौगिक महत्त्वपूर्ण है और न ही इतनी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यही सभी प्रकार के जीव जन्तुओं और वनस्पतियों के लिये अनिवार्य पदार्थ है। मनुष्य के शरीर में लगभग 80प्रतिषत जल पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई (75) भाग जल से घिरा है।

इस भूमण्डल पर जल कभी समाप्त नहीं हो सकता परन्तु इसका रूप परिवर्तन हो जाता है। कभी ठोस, कभी द्रव, कभी गैस के रूप में हमेषा विद्यमान रहता है लेकिन मात्र 3 प्रतिशत जल मृदु  जल है जिसमें केवल 1 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। बाकी 97प्रतिषत जल सागरों, महासागरों, झीलों और अन्य जलाषयों में खारे पानी के रूप में पाया जाता है। इसका हिमांक 0डिग्री तथा क्वथनॉक 100डिग्री सेंटीग्रेट है, जिससे स्पष्ट है कि ताप नीचे गया तो बर्फ और ऊॅचा हुआ तो वाष्प में परिवर्तित हो जाता है।

जब वर्षा का जल या हिम के पिघलने से प्राप्त हुआ जल रिस- रिस कर पृथ्वी के अन्दर चला जाता है तो इस तरह भूमि के नीचे जल का विषाल भण्डार हो जाता है। इसे भूमिगत जल कहते हैं जो मीठा होता है। यही जल मनुष्य के लिए सर्वाधिक उपयोगी है। जिस स्थान से यह जल आसानी से प्राप्त हो जाता है वहॉ कुओं, हैण्डपम्पों, समर्सिबल तथा नलकूपों की सहायता से मनुष्य अपना घरेलू काम आसानी से कर लेता है। सिंचाई तथा उद्योगों से सम्बन्धित काम भी इसी जल से होते हैं।

भूमिगत जल में पोषक तत्व भी होते हैं जिससे पृथ्वी हरी-भरी रहती है। झरनों से भी इसी तरह का जल मिलता है जबकि कृषि और घरेलू कार्यों के लिए जल हमें पथ्वी की ऊपरी सतह से प्राप्त होता है। बिगड.ते पर्यावरण के कारण आज पथ्वी के तापमान में वद्धि हुई है जिसके कारण पीने के पानी की समस्या बढ.ती जा रही है। अतएव जल की आवश्यकताओं को देखते हुए भूमिगत जल और भू-पृष्ठीय जल का समुचित उपयोग होना चाहिए जिससे आने वाले समय में जल की कमी न हो सके।

परन्तु विडम्बना है कि जहॉ जल पर्याप्त मात्रा में मिल रहा है वहॉ मानव उसका दुरुपयोग कर रहा है और जल की बर्वादी पर ध्यान नही देता। जहॉ पानी की कमी है वहॉ लोग पानी के लिए बेहद परेषान होते हैं और गर्मियों में तो त्राहि-त्राहि मच जाती है।जल के बिना जीवन संभव नही है तथा पानी का हम बड़ी मात्रा में निर्माण नहीं कर सकते। इसलिए जल की बर्वादी को रोकना हमारा कर्तब्य है तभी हम भावी पीढी का जीवन सुरक्षित रख सकेंगे। जल में आक्सीजन का महत्त्वपूर्ण रोल है इसलिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण भी जरूरी है।

                   रामसेवक वर्मा

    विवेकानन्द नगर,पुखरायॉ,कानपुर देहात उ0प्र0-209111

Author: aman yatra

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