सम्पादकीयसाहित्य जगत

जुड़ेगी अपराध से अपराधी की कड़ी

अमन यात्रा

 

संसद में आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 पारित किया गया। यह क़ानून अपराधियों की पहचान में सटीकता को बढ़ाएगा। बदलती दुनिया के साथ बदले आपराधिक स्वरूप  के अनुसार बायोमेट्रिक रिकॉर्ड असली अपराधियों की संलग्नता को सुनिश्चित करेगा। शीघ्रअतिशीघ्र  निर्दोष को निर्दोष सिद्ध करना सम्भव होगा।और कम समय में पीड़ित को न्याय उपलब्ध कराकर उसके घाव को भरा जा सकेगा।
तमाम आपराधिक क़ानूनों एवं नियमो के बावजूद भय मुक्त समाज आज भी एक सपना है। चूँकि क़ानूनों की प्रभावशीलता तो तभी सिद्ध होती है जब इनका सही समय पर सटीकता से प्रयोग के किया जाए। और दोषसिद्ध व्यक्ति को शीघ्रअतिशीघ्र दण्डित किया जा सके। न्यायालय के समक्ष चुनौती तब आती है  जब अपर्याप्त साक्ष्य एवं उचित जाँच न होने से दोषसिद्ध एवं निर्दोष में अंतर कर पाना कठिन हो जाता है। निर्दोष को दंड से बचाने लिए अपराधी भी बच निकलते है। या स्थितियाँ  यहाँ तक देखने को मिलती है कि साक्ष्यों की प्रमाणिकता के अभाव में निर्दोष व्यक्ति दण्डित हो जाता है। यानी अपराधियों  की पहचान के लिए 100 वर्ष से अधिक पुराना क़ानून क़ैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की सीमाओं का फ़ायदा उठाकर अपराधियों का क़ानून की रडार से बाहर हो जाना आम हो चला था। जोकि  अपराधियों की गर्भगृह को पोषित करता मालूम पड़ता था। वहीं दूसरी तरफ़ निर्दोष की सुरक्षा सुनिश्चित कर पाना भी एक बड़ी चुनौती था। पुराना हो चला क़ानून समय के साथ  बदली तकनीकी पेंचीदगियो के चलते उसकी प्रभावशीलता का ह्रास हुआ। जिसका प्रमाण है कि देश में जघन्य मामलों में दोषसिद्धि यानी अपराध साबित होने की दर 50 प्रतिशत से भी कम है। जैसे कि केंद्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2020 के अनुसार हत्या के मामलों में दोषसिद्धि दर 46 प्रतिशत, दुष्कर्म के मामलों  में 37 प्रतिशत। जबकि वैश्विक स्तर पर अमेरिका, जापान, रुस आदि में यह दर 99 प्रतिशत तक है। दोषसिद्धि और क़ानून के भय से सीधा सम्बंध होता है यानी दर कम होगी तो स्वाभाविक है ख़ौफ़ कम होगा और इस कम ख़ौफ़ की परिणति होगी उस समाज या देश में बढ़ती आपराधिक गतिविधियाँ। भारत की न्यून दर के पीछे दो कारण हो सकते है- पहला, शिकायत पंजीयन में फर्ज़ीवाडा या दूसरा, आधुनिक दुनिया के अपराधों में तकनीकी आधारित जाँच का न होना एवं अभ्यस्त अपराधियों द्वारा अपराध को यूँ अंजाम देना कि साक्ष्य आसानी से न जुटाए जा सके। कुछ यही आधार रहे होंगे कि आपराधिक न्याय प्रणाली पर मालीमठ कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मौजूदा न्याय प्रणाली अभियुक्तों के पक्ष में झुकी है। जिसे संतुलित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम के रूप में संसद में आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 पारित किया गया। ताकि एक सदी में बदली तकनीकी के अनुरूप उसे प्रभावी बनाया गया है । जिससे कि अपराधी को आड़े लेना और उसके पुराने क़ानून की आड़ में अपराध पर अंकुश सम्भव होगा। उल्लेखनीय है कि पुराने क़ानून में मजिस्ट्रेट की अनुमति से केवल फ़ोटो, फ़िंगरप्रिंट, फुटप्रिंट लेने का अधिकार था। नए विधेयक से पुलिस अपराधियों के तमाम प्रकार बायोलॉजिकल नमूने फ़ोटो, फ़िंगरप्रिंट, फुटप्रिंट के अलावा रेटिना बायोमेट्रिक, खून, बाल, लार आदि तमाम प्रकार के सैम्पल ले सकेगी। इसके साथ हैंड राइटिंग, हस्ताक्षर आदि डाटा का डिजिटलीकरण करके उसे एनसीआरबी के डाटा बेस में जमा किया जाएगा। अब पहचान बदलकर या छिपाकर अपराध को अंजाम देना आसान नहीं होगा।
पुलिस विवेचना में सटीकता और तेज़ी आएगी और आगे की न्यायिक प्रकिया अधिकाधिक तीव्र और निष्पक्ष होगी। जो निश्चित तौर पर निर्दोषों के फँसने की आशंका को कम करेगा। ध्यातव्य  है कि मामला न्यायालय तक पहुँचने की प्रक्रिया में क़ानून का उपयोग करने वाले तंत्र यानी पुलिस व्यवस्था से होकर गुजरता है इस दौरान तमाम संकीर्णताओं का जमकर दुरुपयोग होता है; इस प्रकार उचित न्याय दिलाने के लिए क़ानून व्यवस्था प्रवर्तित करने वालों पर भी पेंच कसने की ज़रूरत है।
निस्संदेह अपराधी प्रवृत्तियों पर लगाम लगाने में पारित विधेयक मील का पत्थर साबित होगा बशर्ते इसके अनुरूप सुविधाएँ बढ़ाई जाए। जैसे कि अधिकाधिक विधि विज्ञान विशेषज्ञों की नियुक्ति, विधि विज्ञान प्रयोगशालाएँ निर्मित की जाएँ वर्तमान में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मात्र एक प्रयोगशाला है इस कारण जाँच रिपोर्ट आने में वर्षों लग जाते हैं। रिपोर्ट में विलम्ब की वजह से निर्दोष को निर्दोष सिद्ध होने में लम्बा समय लग जाता है जोकि उसके मानवाधिकारों का सीधे तौर पर उल्लंघन है। तथा पीड़ित को न्याय मिलने में देरी उसके ज़ख्मों को लम्बे समय तक ताज़ा बनाए रखती है। यह विलम्ब नियम-क़ानून आधारित समाज के लिए नकारात्मक सूचक है। तमाम सुधार सुविधाओं सहित यह क़ानूनी प्रयास भविष्य में न्यायिक प्रक्रिया में तेज़ी  लाएगा एवं आपराधिक नकारात्मकता न्यून करने की उम्मीद देता है।

                     मोहम्मद ज़ुबैर, कानपुर

                    MSW (Gold Medalist)

इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय,इलाहाबाद

AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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