मोहम्मद ज़ुबैर
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कविता
छोड़ दूँ क्या…..?
मिली असफलताएँ, हौसला तोड़ दूँ क्या? बहती उल्टी धारा, तैरना छोड़ दूँ क्या? नहीं होती हार, जो करता कोशिश बारम्बार, आख़िर चींटी चढ़ जाती लेकर भार, जूझना छोड़ दूँ क्या? मिली चुनौतियाँ, सपने तोड़ दूँ क्या? अब आ गए मझधार, रास्ता मोड़ दूँ क्या? मिली उसे मंज़िल, जिसने गिने मील के पत्थर हज़ार, आख़िर कछुआ कर गया पाला पार, चलना छोड़ दूँ क्या? मिली ज़िम्मेदारियाँ, नज़रें मोड़ दूँ क्या? बढ़ने लगा बोझ,…
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साहित्य जगत
धार्मिक आड़ से हिंसा दोहरा अपराध
धर्म को पवित्रता एवं राज्य को क़ानूनी शासन बनाए रखने के लिए हिंसा के प्रति किसी एक का भी मौन…
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साहित्य जगत
मंदी और महंगाई का मिश्रित दौर
दोहरे संकट से निपटने के लिए देश अपने-अपने स्तर पर मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों में हेरफेर कर अपनी अर्थव्यवस्था को…
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सम्पादकीय
सौहार्द से समाधान
कोई एक मंदिर कोई एक मस्जिद हिंदुत्व या इस्लाम से बड़ी नहीं हो सकती। जारी ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा और…
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सम्पादकीय
वृद्धि हो ऐसी जो करे विकास
वर्तमान में जारी बहस- वृद्धि बनाम विकास। असहमति यह है कि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए कौन सा मॉडल सटीक…
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सम्पादकीय
भाषा में भी आत्म निर्भर बने: भारत
हिंदीतर जैसे कि अंग्रेज़ी के विरुद्ध जिहादी या कट्टर मानसिकता तो ठीक नहीं है लेकिन मातृभाषा यानी हिंदी या अपने…
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सम्पादकीय
जुड़ेगी अपराध से अपराधी की कड़ी
संसद में आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 पारित किया गया। यह क़ानून अपराधियों की पहचान में सटीकता को बढ़ाएगा।…
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साहित्य जगत
हिंदी का गणित
हर तारीख़ का अपना इतिहास और महत्व होता है। इसी प्रकार 10 जनवरी हिंदी प्रेमियों के लिए काफ़ी अहम है।प्रत्येक…
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