टीईटी अनिवार्य करने के फैसले से शिक्षकों में नाराजगी,सांसद को सौंपा ज्ञापन
सुप्रीम कोर्ट के टीईटी फैसले के खिलाफ शिक्षकों का जोरदार प्रदर्शन, सरकार से कानून में संशोधन की मांग

- नौकरी पर मंडराते संकट से हजारों परिवार चिंतित, प्रदेशव्यापी आंदोलन की चेतावनी
पुखरायां, कानपुर देहात: उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने शुक्रवार को पुखरायां कस्बे के पटेल चौक पर एकत्रित होकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों पर जबरन टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) लागू करने के फैसले का कड़ा विरोध किया। इस निर्णय को अपनी वर्षों पुरानी सेवा और भविष्य पर खतरा मानते हुए, शिक्षकों ने जिलाध्यक्ष एल.बी. सिंह के नेतृत्व में सांसद नारायणदास अहिरवार को शिक्षा मंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने और कानून में आवश्यक संशोधन करने की अपील की गई, ताकि हजारों शिक्षकों की नौकरी सुरक्षित हो सके।
शिक्षकों का मानना है कि यह फैसला उन हजारों शिक्षकों के लिए एक बड़ा संकट पैदा कर रहा है, जिनकी नियुक्ति वर्ष 2011 से पहले हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से उनकी नौकरी पर खतरा मंडराने लगा है। जिलाध्यक्ष एल.बी. सिंह ने कहा कि यह फैसला शिक्षकों के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि जब उनकी नियुक्ति हुई थी, तब टीईटी की अनिवार्यता नहीं थी और उन्होंने उस समय की निर्धारित सभी योग्यताएँ पूरी की थीं। कई साल बाद इस तरह की नई शर्त लागू करना पूरी तरह से अनुचित है। यह निर्णय शिक्षकों में भारी मानसिक तनाव और असुरक्षा की भावना पैदा कर रहा है।
शिक्षकों ने कहा कि वे वर्षों से ईमानदारी और लगन के साथ शिक्षण कार्य कर रहे हैं, और उनके अनुभव और योग्यता पर सवाल उठाना गलत है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से शिक्षा जगत में निराशा का माहौल है। शिक्षक लगातार यह महसूस कर रहे हैं कि उनकी वर्षों की सेवा और समर्पण को नजरअंदाज किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि हजारों परिवारों के भविष्य का सवाल है। उन्होंने सांसद नारायणदास अहिरवार से आग्रह किया कि वह इस संवेदनशील मुद्दे को केंद्र सरकार और शिक्षा मंत्रालय तक पहुँचाएँ और शिक्षकों को न्याय दिलाने में मदद करें।
शिक्षकों के इस आंदोलन को समाज के विभिन्न वर्गों का समर्थन मिल रहा है। उनका कहना है कि सरकार को शिक्षकों की चिंताओं को समझना चाहिए और एक ऐसा समाधान निकालना चाहिए जो न्यायसंगत हो और जिससे उनकी नौकरी सुरक्षित रहे। यह मुद्दा न केवल शिक्षकों के बीच, बल्कि पूरे शिक्षा जगत में चर्चा का विषय बना हुआ है।
ज्ञापन में सरकार से मांग की गई है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे और कानून में आवश्यक संशोधन करे ताकि टीईटी की अनिवार्यता को समाप्त किया जा सके, विशेषकर उन शिक्षकों के लिए जिनकी नियुक्ति पहले ही हो चुकी है। शिक्षकों का तर्क है कि वे वर्षों से ईमानदारी से शिक्षण कार्य कर रहे हैं और उनके अनुभव और योग्यता पर सवाल उठाना गलत है।
प्रदर्शन के दौरान, जिला मंत्री अशोक कुमार शुक्ला, संरक्षक सूरज सिंह यादव, कोषाध्यक्ष देवेंद्र सिंह सचान, गणेश अवस्थी, यजुवेंद्र सिंह, सुनील सचान, जितेंद्र यादव, आलोक यादव, सुनील यादव, विजयकांत सचान, सुरेश कमल, सुरेश राठौर, विजय शुक्ला, ब्रम्हेश गुप्ता, विजय यादव, सतीश यादव, दीपक गुप्ता सहित बड़ी संख्या में शिक्षक मौजूद रहे। उन्होंने एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए सरकार से अपनी मांगों को गंभीरता से लेने की अपील की।
जिला मंत्री अशोक कुमार शुक्ला ने बताया कि यह केवल कानपुर देहात का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के शिक्षकों का मुद्दा है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ इस मुद्दे को लेकर प्रदेशव्यापी स्तर पर संघर्ष करने के लिए तैयार है। यदि सरकार ने समय रहते कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया, तो शिक्षक बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा कि उनका संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कि यह अन्यायपूर्ण अनिवार्यता समाप्त नहीं कर दी जाती और सभी शिक्षकों की नौकरी सुरक्षित नहीं हो जाती। यह फैसला शिक्षा प्रणाली पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा, क्योंकि इससे शिक्षकों का मनोबल गिरेगा और उनकी शिक्षण गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। इस आंदोलन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए शिक्षक एकजुट हैं और वे किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे।
सांसद नारायणदास अहिरवार ने शिक्षकों की बातों को ध्यान से सुना और उन्हें आश्वस्त किया कि वह उनके ज्ञापन को उचित माध्यम से शिक्षा मंत्री तक पहुँचाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार हमेशा शिक्षकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और इस गंभीर मामले पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। शिक्षकों ने उम्मीद जताई कि सरकार उनकी मांगों को सुनेगी और जल्द ही कोई समाधान निकालेगी, जिससे उनकी नौकरी का संकट दूर हो सके।
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