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नवजात शिशुओं के लिए संकटमोचन बन रहा एसएनसीयू

सही समय पर उचित स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में बीमार नवजात को गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए फैसिलिटी एवं समुदाय स्तर पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है।

Story Highlights
  • नवजात शिशुओं के गहन चिकित्सा कक्ष में होता है मुफ्त उपचार
  • तीन वर्ष में दो हजार से अधिक मासूमों की बचा चुका है जान
  • जिला महिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में स्थापित हैं एसएनसीयू
  • समय से पहले जन्मे शिशु का रखें विशेष ख्याल – डॉ शिव

कानपुर नगर। सही समय पर उचित स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में बीमार नवजात को गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए फैसिलिटी एवं समुदाय स्तर पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। जिसमें जिला महिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में स्थापित सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) की भूमिका अहम है।

जिला महिला अस्पताल, डफ़रिन में स्थापित एसएनएसीयू के नोडल अधिकारी व वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ शिव कुमार बताते हैं कि पिछले तीन वर्ष में इस यूनिट में कुल 2037 नवजात भर्ती हो कर सवस्थ हो चुके हैं । इस वर्ष अप्रैल से अब तक कुल 67 नवजात को भर्ती किया जा चुका है। वर्तमान में 13 नवजात भर्ती हैं।

डॉ कुमार ने बताया कि जिला महिला चिकित्सालय में स्थित “सिक न्यूबर्न केयर यूनिट” वर्ष  2015 में शुरू हुआ था। वर्त्तमान में यहां बच्चों को भर्ती करने के लिए 20 बेड हैं। यह विशेष वार्ड एक माह तक के उन बच्चों के लिए बनाया गया है जो समय से पहले पैदा हुये हों, कम वजन के हों, पीलिया या श्वांस संबंधी समस्या से ग्रसित हों। इसके अलावा एक माह तक के बच्चों को अन्य बीमारियां होने पर उनका निःशुल्क इलाज किया जाता है। एसएनसीयू में उपलब्ध रेडिएंट वार्मर, आक्सीजन कंसंट्रेटर, फोटोथेरेपी, पल्स आक्सीमीटर तथा इंफ्यूजन पंप आदि आधुनिक चिकित्सीय उपकरणों के सहारे जन्म लेने के बाद मौत से जूझते बच्चों को नया जीवन प्रदान किया जाता है। यहां बच्चों के लिए चौबीस घंटे आॅक्सीजन की व्यवस्था उपलब्ध है। जब बच्चे थोड़े स्वस्थ होते है तो उन्हें कंगारू मदर केयर की चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।

डिस्चार्ज बच्चों का फॉलोअप- 

डॉ. शिव ने बताया कि एसएनसीयू से डिस्चार्ज होने के बाद भी कम वजन वाले बच्चों में मृत्यु का अधिक खतरा रहता है। स्वस्थ नवजात की तुलना में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों में कुपोषण के साथ मानसिक एवं शारीरिक विकास की दर प्रारंभ से उचित देखभाल के आभाव में कम हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए नवजात के डिस्चार्ज होने के बाद भी उनका नियमित फॉलोअप किया जाता है। इसके लिए आशा शिशुओं को 3 माह से 1 वर्ष तक त्रैमासिक गृह भ्रमण कर उनकी देखभाल करती हैं।

संकट में पड़े प्राण तो एसएनसीयू ने बचाई जान-

परेड चौराहा निवासी ताजवर ने मार्च माह में अपने बच्चे को एक निजी चिकित्सालय में जन्म दिया। बड़ी मन्नतों के बाद औलाद के होने पर घर-परिवार में जमकर खुशियां मनी। मिठाइयां बांटी गई । सारी खुशियां अचानक दुःख में बदल गईं जब पता चला बच्चा रोया नहीं। फ़ौरन बच्चे को उसी चिकित्सालय के बेबी केयर इकाई में दाखिल  कर उसका बर्थ एस्फिक्सिया का इलाज शुरू हुआ । पर तीन दिन बाद ही पैसों की तंगी के कारण परिवारजन निराश हो गए और डिस्चार्ज करवाने की प्रक्रिया करवाने लगे तभी किसी ने उन्हें जिला महिला अस्पताल, डफ़रिन के “सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट” (एसएनसीयू) ले जाने की सलाह दी।  एसएनसीयू में बच्चे के भर्ती होते ही वहां मौजूद विशेषज्ञ डॉक्टर उसके इलाज में जुट गए। 25 दिनों तक भर्ती रहने के बाद ही बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो गया, तब कहीं जाकर ताजवर और उनके पति के चेहरे पर रौनक लौटी।

रमईपुर निवासी पेशे से बढ़ई अशोक की पत्नी ने बेटी को जन्म दिया। दो दिन बाद ही बच्ची का शरीर पीला दिखने लगा। तबियत बिगड़ती देख बेटी को लेकर वह समीप के नर्सिंग होम में पहुंचा। वहां बेटी को भर्ती करने के लिए कहा गया लेकिन उपचार के लिए जो बजट बताया गया वह उसे चुका पाने में असमर्थ था। इसे लेकर वह चिंतित ही था कि एक पड़ोसी की सलाह पर अशोक ने बेटी को डफ़रिन के एसएनसीयू में भर्ती कराया। दस दिनों तक चले उपचार के बाद बेटी की जान बच गई वह भी बिना खर्च के। पूरा उपचार निःशुल्क हुआ।

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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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