साहित्य जगत
“परिणीता का श्रृंगार : तेरे प्रति मेरा प्यार”
करवाचौथ का पावन पर्व एक अप्रतिम, अद्वितीय रिश्ते की सुंदरता का स्मरण कराता है, जिसमें एक-दूसरे को समझने से लेकर एक-दूसरे को अपनाने तक का भाव निहित होता है।

करवाचौथ का पावन पर्व एक अप्रतिम, अद्वितीय रिश्ते की सुंदरता का स्मरण कराता है, जिसमें एक-दूसरे को समझने से लेकर एक-दूसरे को अपनाने तक का भाव निहित होता है। कैसे किसी के प्रेम को सर्वस्व मानकर सहर्ष सुख-दु:ख का अनुभव किया जाता है। किस प्रकार एक व्यक्ति में पूरी दुनिया की खुशियाँ सिमट जाती है। अविश्वास से भरी दुनिया में ऐसे विश्वास से भरे जीवन साथी का मिलना एक परम सौभाग्य की निशानी है। ऐसा हमसफर जो आपके भावों के अनकहे स्वर को समझकर अभिव्यक्ति देता है, जो डगमगाते कदमों को थामकर उसमें नवीन ऊर्जा संचारित करके फिर से जीवन का पथ प्रदर्शन करता है। अनुकूल जीवन साथी मिलना तो मनुष्य जीवन में प्रेम की यात्रा को सरलता एवं पूर्णता से पूर्ण कराने की ओर अग्रसर होता है। प्रेम की अभिव्यक्ति तो अत्यंत सरल है, परंतु प्रेम के प्रति समर्पण अत्यंत कठिन है। गृहस्थी की यात्रा में जीवन की असली रौनक धन एवं बाहरी संसाधनों पर निर्भर नहीं बल्कि निश्छल प्रेम में प्रतीत होती है।
निशाकर का इंतज़ार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
परिणीता का श्रृंगार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
व्योम का निहार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
कुमुदकला का निखार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
ईश्वरीय लीला में प्रेम के प्रति समर्पण शिव और सती के चरित्र में दृष्टिगोचर होता है। शिव सती के प्रति समर्पित थे और सती शिव के प्रति। शिव के निरादर के कारण सती ने आत्मदाह कर लिया और सती के कारण शिव उनके शव को लेकर व्याकुल होकर यत्र-तत्र विचरण करने लगे। ऐसा ही अनूठा प्रेम हमें श्री राम एवं सीता के चरित्र में दिखता है। जिन सीता माता ने भगवान श्री राम को स्वर्ण मृग पर मोहित होकर लाने की इच्छा प्रकट की उन्हीं माता ने स्वर्ण लंका को तुच्छ मानकर उसका तिरस्कार किया। प्रभु श्री राम जानते थे कि स्वर्ण का कोई मृग नहीं होता परंतु अपनी अर्धांगिनी की इच्छा पूर्ति के लिए वे वन की ओर गए। जब प्रभु श्री राम और माता सीता वनवास का समय व्यतीत कर रहे थे तो उस परिस्थिति में भी श्री राम, माता सीता को पुष्पों की श्रृंगार सामाग्री भेंट किया करते थे। कृष्ण, राधा के प्रेम में राधा ने सदैव कृष्ण से निःस्वार्थ प्रेम किया। राधा ने कभी द्वारिकाधीश राजा से प्रेम नहीं किया बल्कि उस कृष्ण कन्हैया से प्रेम किया जो गौ चराया करता था। जो माखन चोर था। जो गोपियो के साथ रास रचाता था और जो मुरली मनोहर था। राधा, कृष्ण के प्रति समर्पित थी और इस समर्पण में सदैव कृष्ण की प्रसन्नता ही प्रमुख थी और कृष्ण भी सदैव राधा के नाम के स्मरण से प्रफुल्लित होते है, इसलिए उन्होंने अपनी आराधना और जीवन में राधा को सर्वोच्च स्थान दिया।
प्रभा का आधार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
दीर्घायु कीचाह, तेरे प्रति मेरा प्यार।
सुह्रद का स्वरुप, तेरे प्रति मेरा प्यार।
क्षुधा की पुकार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
अखंड सौभाग्य के प्रतीक इस त्यौहार में नारी के मस्तक पर शोभित बिंदी मुखमंडल की शोभा बढ़ाती है। जुड़ा, गजरा, चूड़ी सभी अलंकार से वह अपने आप को सुशोभित करती है। सोलह श्रृंगार से उत्साह और उमंग के नवीन पुष्प हृदय में पल्लवित होते है। श्रृंगार की मनमोहिनी छवि से वह अपने आप को संवारती है। प्रेम ही जीवन में सौन्दर्य को प्रकाशित करता है। नारी चाहती है कि उसके पति उसकी खामोशी, अल्हड़पन, जिद, हँसना, रोना, हर मनोभाव को समझे और प्रत्येक परिस्थिति में वह उसके प्रेम को ही सर्वोपरि ही माने।
प्रेम पूर्णतः एहसासों की अभिव्यक्ति है। मौन होकर यदि शब्दों को प्रतिपादित किया जा सकें तो यह प्रेम का यथार्थ स्वरूप है। प्रेम में व्यक्ति को समभाव से अपनत्व प्रदान किया जाता है। गुण एवं दोषों से परे केवल उसमे प्रेम ही सर्वस्व होता है। जीवन साथी की बुराइयों एवं कमियों को भी समय के साथ-साथ अच्छाइयों में परिवर्तित करने की शक्ति प्रेम में है। प्रेम निश्छल भाव से किया जाता है। हृदय की क्षुधा को प्रेम के भावों से ही तृप्ति मिलती है। करवाचौथ का त्यौहार परस्पर प्रेम, सम्मान एवं त्याग का पर्व है। निशाकर की प्रतीक्षा में भी प्रेम का भाव ही सर्वोपरि होता है। हर श्रृंगार में जीवन साथी की खुशी निहित होती है। यह सौंदर्य का अनूठा श्रृंगार जीवन साथी के प्रति अद्वितीय प्यार को प्रदर्शित करता है। करवाचौथ के दिवस की भांति गृहस्थी की यात्रा में प्रेम, अपनत्व एवं अनूठे श्रृंगार में न्यूनता न आने दे। प्रेम की अभिव्यक्ति समय एवं तिथि पर निर्भर नहीं है। जीवन में प्रेम की अभिव्यक्ति जीवन को पूर्णता प्रदान करती है एवं जीवन में उत्साह एवं आनंद के प्रसून प्रफुल्लित करता है।
सलिल का पान, तेरे प्रति मेरा प्यार।
अर्क का पर्याय, तेरे प्रति मेरा प्यार।
सौभाग्य का सूत्रधार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
अपनत्व का उपहार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
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