मास्टर बन गए मोबाइलमैन बच्चे हो गए गनमैन
बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए प्रतिदिन नए-नए फार्मूले निकाले जा रहे हैं। सारे रिसर्च परिषदीय स्कूलों पर ही किए जा रहे हैं। बेचारा शिक्षक इन्हीं सरकारी फरमानों में चकरघिन्नी की तरह उलझा रहता है। शिक्षा विभाग द्वारा रोज रोज नित नए प्रयोग किए जा रहे है।

कानपुर देहात : बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए प्रतिदिन नए-नए फार्मूले निकाले जा रहे हैं। सारे रिसर्च परिषदीय स्कूलों पर ही किए जा रहे हैं। बेचारा शिक्षक इन्हीं सरकारी फरमानों में चकरघिन्नी की तरह उलझा रहता है। शिक्षा विभाग द्वारा रोज रोज नित नए प्रयोग किए जा रहे है। आजकल शिक्षक गुरुजी न होकर मोबाइलमेन बन गया है। सारा कार्य मोबाइल से कराया जा रहा है जिसके कारण शिक्षकों को दिनभर नेट चलाना पड़ रहा है, विभिन्न प्रकार की जानकारी दिनभर में कई कई बार प्रतिदिन आ रही है, वह भी तत्काल मांगी जाती है। शिक्षकों को विभाग की तरफ से न तो कोई मोबाइल दिया गया है न ही डाटा पैक के लिए धनराशि दी जाती है। शिक्षक सारा दिन मोबाइल में सरकारी फरमानों को पूरा करने में लगे रहते हैं और बच्चे कागज की गन बनाकर चोर सिपाई का खेल खेलते रहते हैं।
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शिक्षकों से कई जानकारियां बार-बार मांगी जाती है और कई तो जानकारियां ऐसी हैं जिनका शिक्षा में कोई व्यवहारिक उपयोग भी नहीं है। जाहिर सी बात है कि ऐसे आदेशों से स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई चौपट हो रही है और तमाम शिक्षक अपने ही विभाग की पैदा की गई इस परेशानी से जूझ रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर शिक्षक ने बताया कि शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों को बेवजह मानसिक रूप से प्रताड़ित व परेशान किया जा रहा है। स्कूल अब स्कूल नहीं बल्कि सिर्फ डाकतार विभाग बन कर रह गया है। एक ही जानकारी को बार बार मांगा जाता है। विभिन्न जानकारियां ऐसी रहती हैं जिन्हें मोबाइल से ही अपलोड करना पड़ रहा है। दिनभर मोबाइल के इस्तेमाल से अधिकांश शिक्षकों को सिरदर्द, आंख दर्द, कान दर्द, बहरापन, आंखों के आगे अंधेरा छाना, दिमागी टेंशन, चिड़चिड़ा पन सहित नाना प्रकार की बीमारियां हो रही हैं। कई शिक्षकों को शिक्षक संकुल बनाकर विभागीय कार्यों को सौंप दिया गया है जो पढ़ाई लिखाई को छोड़कर सिर्फ और सिर्फ विभागीय कार्यो में लगे रहते हैं जिससे सम्बन्धित स्कूलों की पढ़ाई लिखाई प्रभावित हो रही है।
शिक्षकों पर दिन रात विभागीय कार्यों के लिए दबाव रहता है। कार्य नहीं करने पर विभाग से निलम्बन अथवा विभागीय कार्यवाही की घुड़की दी जाती है। दिन रात संकुलों के ग्रुप में हर वक्त विभागीय डाक आ रहे हैं। उक्त डाको को त्वरित बनाना होता है। एक डाक बना नहीं कि दूसरा डाक पहुंच जाता है। अब प्रभारी शिक्षक सिर्फ डाक बनाने में लगे रहते हैं जिससे पढ़ाई लिखाई पूरी तरह बर्बाद हो रही है। इसके लिए बेसिक शिक्षा अधिकारी दोषी नहीं होता क्योंकि उच्च स्तर से बेसिक शिक्षा अधिकारी से खुद ही प्रतिदिन सैकड़ों सूचनाएं मांगी जाती हैं, जो सूचना बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा दी जा चुकी होती है कुछ दिन बाद पुनः फिर वही सूचना मांगी जाती है। अधिकारी ना चाहते हुए भी ऐसी बेकार व्यवस्था को पूरा करने में लगे रहते हैं क्योंकि उनको भी कार्यवाही का डर सताता रहता है। इस तरह शिक्षक अपना वास्तविक कार्य नहीं कर पा रहे हैं जिसकारण पूरी शिक्षा व्यवस्था चौपट हो रही है।
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