प्रधानाचार्य राजकीय मेडिकल कॉलेज उरई ने बिना योग्यता के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को किया लिपिक पद पर तैनात
आज के समय में जहां भाजपा सरकार आने के बाद मानो भ्रष्टाचार खत्म होने की कगार पर है लेकिन कुछ पुराने खिलाड़ी आज भी खेल खेल रहे हैं और सरकार से दो कदम आगे हैं.

उरई (जालौन ),अनुराग श्रीवास्तव। आज के समय में जहां भाजपा सरकार आने के बाद मानो भ्रष्टाचार खत्म होने की कगार पर है लेकिन कुछ पुराने खिलाड़ी आज भी खेल खेल रहे हैं और सरकार से दो कदम आगे हैं. जो सारे नियमों को ताक पर रखकर मनमर्जी से नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन ऐसे लोगों के क्रियाकलाप देर सवेर ही सही सामने आ ही जाते हैं
ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है जहां सूत्रों की मानें तो राजकीय मेडिकल कॉलेज उरई के प्रधानाचार्य ने अपने खासम खास चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी अरविंद मिश्रा को कोरोना काल की पहली व दूसरी लहर के समय कोरोना सैंपलिंग का कार्यभार संभालने को दे दिया। जहां लोगों की माने तो चार्ज मिलते ही मानो इनकी किस्मत जैसे खुल ही गई और इनके ऊपर कुबेर महाराज ने धनवर्षा करना शुरू कर दिया जिसके बाद यह पैसों को दोनों हाथों से लुटाने लगे कई खर्चों के साथ उन्होंने लाखों की कीमत से आने वाली चार पहिया गाड़ी भी शोरूम से उठा ली अब देखा जाए तो रातों-रात चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी इतना नहीं कर सकता उस पर जरूर ऊपर वाले का हाथ होता है तो वहीं मेडिकल सूत्रों का कहना है कि यह कार्य प्रधानाचार्य की देखरेख में हो रहा था जिन्होंने भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर दी क्योंकि कोरोना काल के समय प्रधानाचार्य ने इस कर्मचारी व इस सहयोगी के जरिए लक्ष्मी दान लेकर ऐसी अनगिनत फर्जी रिपोर्ट बनाई जिसमें नेगेटिव को पॉजिटिव दिखाया क्योंकि सरकारी कर्मचारी की चुनाव के समय ड्यूटी लगने के बाद सिर्फ कोरोना ही था.
जो उसकी ड्यूटी कटवा सकता था और कोरोना को प्रधानाचार्य साहब लक्ष्मी दान लेकर कर्मचारी के ऊपर चढ़ा देते थे जिससे वह कर्मचारी घर पर आराम कि नहीं सोता था और प्रधानाचार्य का यह भी कारनामा सामने आया है कि प्रमोट किए गए कर्मचारी अरविंद मिश्रा के जरिए यह कोरोना कि लाखों रुपए की जांच किटें बाजार में बिकवाया करते थे और उस को छुपाने के लिए अपने पास फर्जी रिपोर्ट बनाकर रख लीं। अगर इस फोर्थ क्लास कर्मचारी की बात करें तो सैंपलिंग का काम देने के बाद इनको प्रधानाचार्य ने लिपिक पद पर प्रमोद कर तैनात कर दिया जिसके योग्य ये थे ही नहीं क्योंकि जब इनको पद दिया गया तब इन्हें ना तो उस पद के लिए कोई ज्ञान था और ना ही इन्होंने कोई शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश की क्योंकि अगर उच्च शिक्षा लेते तो इनको अवकाश लेना पड़ता जो इन्होंने नहीं लिया क्योंकि जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का इतना ही नहीं इन महाशय पर ही प्रधानाचार्य मेहरबान नहीं हुए बल्कि ऐसे दो कर्मचारी अमीर साहब व धर्मेंद्र मिश्रा को भी प्रधानाचार्य ने प्रमोट किया लेकिन सोचने का विषय तो यह है कि क्या मेडिकल कॉलेज में और कर्मचारी नहीं थे या उस पद के लिए कोई इतना योग्य नहीं था कि इन्हें फोर्थ क्लास के कर्मचारी को प्रमोट करना पड़ा लेकिन यह जांच का विषय है लेकिन अगर यह अनैतिक कार्य को कर प्रधानाचार्य ने भ्रष्टाचार किया है तो इन पर कार्रवाई होना जरूरी हो जाता है लेकिन कहते हैं कि अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान शायद यह कहावत यहां पर सच होती दिख रही है।
Discover more from अमन यात्रा
Subscribe to get the latest posts sent to your email.