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करोना काल में जनमानस पर पड़ी मार और उसके बाद दिन-प्रतिदिन बढती मंहगाई के कारण इस बार होली का रंग फीका रहेगा। सन् 2020 में होली के उपरान्त चीन से आए करोना वाइरस के चलते विगत 22 मार्च को पहली बार पूरे देश में केन्द्र सरकार द्वारा जनता कर्फ्यू लगाया गया। इस जनता कर्फ्यू में मोदी की यथा स्थित बनाए रखने की अपील के बाद लोगों ने हल्के में लिया और लोग जहां के तहां रूक गए। इसके पूर्व कोरोना पूरे विश्व में दस्तक दे चुका था लेकिन अपने देश में सरकारी तौर पर कोई खास चर्चा नहीं थी। इस बीच 12 मार्च को पड.ा होली का त्योहार भी हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
पीएम मोदी के 24 मार्च को एक बार फिर से देश में लगाये गए लॉकडाउन को लोग समझ नहीं पाए और उसके बाद देश में पूर्ण ताला बंदी हो गई जो कई महीने तक चलती रही। पूरे देश में रोडवेज, रेल परिवहन एवं हवाई यात्रा ही नहीं बल्कि दो पहिया वाहनों तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया जिससे लोग जहां के तहां फंस गए। यही नहीं सभी हाइवे और बाजार बन्द कर दिए गए। किसी भी तरह का माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में रोक लगा दी गईं। इससे लोगों को खाने पीने वाली वस्तुएं भी मिलना बन्द हो गईं। कुछ ही समय के लिए लोग घर से बाहर निकल सकते थे।
पूर्ण लॉकडाउन के कारण सभी छोटे-बडे. कारखाने, उद्योग-धंधे और कुटीर उद्योग बन्द हो गए। स्कूल, कालेज, मॉल, रेस्त्रां, होटल, पार्क, सिनेमा घर आदि तो बन्द थे ही, लोग स्ट्रीट की दुकाने भी नहीं खोल सकते थे। कामगारों को काम न मिलने की समस्या उत्पन्न हो गई तो मालिकों और ठेकेदारों ने कर्मचारियों और मजदूरों को पैसा देना बंद कर दिया। तब लोगों के पास मकान का किराया देने, खाने और रहने की समस्या उत्पन्न हो गई जिससे पूरे देश में अफरा तफरी मच गई। लोगों के पास अपने घर वापस जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
एक तरफ अनजाने वाइरस से पूरे विश्व में दहशत, दूसरी ओर उसके उपचार की व्यवस्था न होना, साथ ही सभी के काम धंधा चौपट हो जाने से आम आदमी बेहद परेशान और चिंतित हो गया। ऐसी स्थिति आई जब बड.ी संख्या मे प्रवासी मजदूर और कामगार सैकडो किलोमीटर दूर शहरों से अपने घर जाने के लिए भूखे पेट चोरी छिपे पैदल ही निकल पड़े। इनमें से बहुतों अपने घर वापस नहीं पहुंच सके और उनकी जीवन लीला रास्ते में ही समाप्त हो गई। अनेकों पुलिस प्रशासन के द्वारा बीच मार्ग में ही चौदह दिन के लिए क्वारंटीन कर दिए गए और परिवार से दूर स्कूल, कालेज तथा पार्कों में प्रशासन से दया की भीख मांगते रहे।
लॉकडाउन का एक वर्ष पूरा हो चुका है लेकिन व्यवस्थायें सुधार होने की बजाए और विगड.ती जा रही हैं। देश में कोरोना के केश एक बार फिर तेजी से बढ. रहे हैं और प्रशासनिक सख्ती फिर से शुरू हो गई है। स्कूल और कालेज बन्द कर दिए गए हैं इसलिए लोग भयभीत हैं कि कहीं फिर से लॉकडाउन न लग जाए। उनका भयभीत होना भी लाजिमी है क्योंकि कोरोना वाइरस अब प्रशासनिक हथियार बन चुका है और देश के लिए कम राजनीतिक उपयोग में अधिक लाया जा रहा है। शिक्षा व्यवस्था पर सबसे अधिक चोट की जा रही है जो नागरिकों के विकास का सबसे उत्तम साधन है। आनलाइन शिक्षा ग्रामीण क्षेत्रों, कमेरों, किसानों तथा गरीबों के लिए कतईं उपयुक्त नहीं हैं।
कोरोना काल की बन्दी के बाद हालत यह है कि प्रवासी कर्मचारी जो अपने गॉव आए वहां काम नहीं है और जो वापस अपने संस्थानों और कारखानों में वापस पंहुचे वहॉ से या तो वापस किया जा रहा है या फिर आधे वेतन पर डबल ड्यूटी करने को मजबूर हैं। शहरों में अधिकांश कुटीर उद्योग और छोटे कल-कारखाने बन्द हो चुके हैं जिससे प्रवासी कर्मचारी भूखों मरने की कगार पर हैं। स्कूल और कालेज बन्द होने से उसमें लगे लाखों की संख्या में प्राइवेट टीचरों के पास अब अपना घर चलाने के लिए कोई दूसरा रोजगार नहीं है। प्रबन्धन भुगतान के लिए धन न होने का रोना रो रहा है जबकि छात्र एवं छात्रों से फीस की वसूली बराबर हो रही है।
इस प्रकार अब लोगों की जेब पूरी तरह खाली है, ऊपर से डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस के दामों में निरन्तर बृद्धि जारी है जिसके कारण बाजार में हर वस्तु कई गुना मंहगी हो चुकी है। बाजार में लोग दुकानों पर जाते हुए भी पर्याप्त खरीददारी नहीं कर रहे हैं। बिक्री न होने से दुकानदार भी परेशान हैं और पूरा दिन अपनी दुकानों में गुजारने के बाद भी कोई खास इनकम नहीं होती। अब जन सामान्य की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी है जिसके कारण घर के खर्च को वह किसी तरह मैनेज कर रहा है। इसलिए यह निश्चित है कि उसकी होली धन की कमी के कारण इस वर्ष फीकी रहेगी।
राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर पुखरायां
कानपुर देहात उ.प्र. 20911
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