लखनऊउत्तरप्रदेशफ्रेश न्यूज

खाद्य पदार्थों में पोषण का संतुलन बेहद जरूरी, अधिक काढ़ा पीने से भी हो सकती हैं दिक्‍कतें

स्वस्थ तन और मन के लिए सेहतमंद खाना बेहद जरूरी है, लेकिन लगातार भागदौड़ भरी होती हमारी जिंदगी में खानपान का तानाबाना ही सबसे ज्यादा बिगड़ रहा है। खानपान की इसी महत्ता को दर्शाने के लिए हर साल 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस का आयोजन किया जाता है। इसके माध्यम से मानव जीवन में खाद्य की महत्व और उससे जुड़ी जागरूकता का प्रसार किया जाता है।

लखनऊ,अमन यात्रा । स्वस्थ तन और मन के लिए सेहतमंद खाना बेहद जरूरी है, लेकिन लगातार भागदौड़ भरी होती हमारी जिंदगी में खानपान का तानाबाना ही सबसे ज्यादा बिगड़ रहा है। खानपान की इसी महत्ता को दर्शाने के लिए हर साल 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस का आयोजन किया जाता है। इसके माध्यम से मानव जीवन में खाद्य की महत्व और उससे जुड़ी जागरूकता का प्रसार किया जाता है।

समय के साथ हमारे खानपान के समीकरण कई पैमानों पर बिगड़े हैं। इस विषय में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के फिजियोलॉजी विभाग में प्रोफेसर नरसिंह वर्मा कहते हैं कि अतीत में जहां खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बेहतर होती थी और खानपान का समय भी निश्चित था तो इंसानी सेहत अमूमन काबू में रहती थी। वक्त के साथ आए बदलाव ने न केवल खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, बल्कि अनियमित जीवनशैली के चलते उनसे अपेक्षित पोषण तक नहीं मिल पाता।

jagran

कोरोना काल ने हमारे जीवन में खानपान की महत्ता को नए सिरे से उभारने का काम किया है। इम्युनिटी बढ़ाने में सबसे निर्णायक भूमिका पोषक खाद्य उत्पादों की थी तो लोगों ने बड़ी एहतियात के साथ अपने खानपान पर ध्यान दिया। हालांकि यह भी देखा गया कि अधिक पोषण प्राप्त करने के चक्कर में लोगों ने फूड इनटेक का संतुलन ही बिगाड़ लिया। डॉ वर्मा कहते हैं कि खाद्य उत्पादों से आवश्यक पोषण प्राप्त करने के लिए आवश्यक है उनका संतुलन एकदम सही हो। कई मामलों में सामने आया कि अधिक काढ़ा पीने से लोगों को पेट संबंधी तमाम तरह की दिक्कतें पेश आने लगीं।

संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट की सीनियर डाइटिशियन रमा त्रिपाठी कहती हैं कि मौजूदा जीवनशैली में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के साथ ही खानपान के तौर तरीकों में बदलाव भी पोषण की तस्वीर को बिगाड़ रहा है। आजकल लोग सुबह के नाश्ते में ब्रेड, कॉर्नफ्लेक्स, बर्गर, सैंडविच आदि का प्रयोग करते हैं। इसके बजाय हम दलिया, बेसन का चिल्ला, इडली, रागी, हरी रोटियां, अंकुरित दालें आदि प्रयोग में ला सकते हैं क्योंकि वह नाश्ते के तौर पर एक संतुलित भोजन की श्रेणी में आते हैं।

डॉ त्रिपाठी कहती हैं कि भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच हम अपने पारंपरिक भोजन जैसे सत्तू, रागी, ज्वार, बाजरा, दालें, सूखे, मेवे, सरसों का तेल, कटहल, कद्दू, तरबूज, खरबूजे के बीज, गुड़ स्थानीय सब्जियां आदि को लगभग भुला दिया है या यूं कहें इनका कम से कम प्रयोग करते हैं। पूरी दुनिया खासकर हमारा युवा वर्ग मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हार्मोन असंतुलन, एनीमिया, कुपोषण आदि समस्या से जूझ रहा है। इसका सीधा संबंध हमारी बदलती जीवन शैली और असंतुलित पाश्चात्य संबंधी खानपान से है।

pranjal sachan
Author: pranjal sachan

कानपुर ब्यूरो चीफ अमन यात्रा


Discover more from अमन यात्रा

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

pranjal sachan

कानपुर ब्यूरो चीफ अमन यात्रा

Related Articles

AD
Back to top button

Discover more from अमन यात्रा

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading