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औरैया

शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में टीकाकरण सहायक

शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में टीकाकरण काफी सहायक होता है। वैक्सीन शरीर को रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। इन्हीं बातों पर चर्चा करने के उद्देश्य से गुरुवार को जनपद के एक स्थानीय होटल में प्रीवेंटल डिजीजेज ( टीकाकरण के माध्यम से बचाव की जा सकने वाली बीमारियां) एवम एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस (अचानक होने वाला लकवा) पर जनपद स्तरीय कार्यशाला हुई।

विकास सक्सेना, औरैया। शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में टीकाकरण काफी सहायक होता है। वैक्सीन शरीर को रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। इन्हीं बातों पर चर्चा करने के उद्देश्य से गुरुवार को जनपद के एक स्थानीय होटल में प्रीवेंटल डिजीजेज ( टीकाकरण के माध्यम से बचाव की जा सकने वाली बीमारियां) एवम एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस (अचानक होने वाला लकवा) पर जनपद स्तरीय कार्यशाला हुई।  स्वास्थ्य विभाग के तत्वधान में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से कार्यशाला का आयोजन किया गया।
बैठक का शुभारंभ मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अर्चना श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने बताया कि अंगों में लकवा के कई कारण हैं जिनमें से कुछ जीबी सिंड्रोम,पोलियो माईलाईटिस आदि प्रमुख हैं। वैक्सीन प्रीवेंटल डिजीज वह बीमारियां होती हैं,जिनसे समय से टीकाकरण कराकर बचा जा सकता है। जैसे डिप्थीरिया,काली  खांसी,टिटनेस, हेपेटाइटिस,मिजिल्स,रुबेला आदि है। उन्होंने जनसामान्य से ससमय टीकाकरण कराने की अपील की।

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ राकेश सिंह ने बताया कि बचपन में होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए सबसे बेहतर उपाय टीकाकरण है। यह 12 जानलेवा बीमारियों से बचाता है। जिसमें टीबी, हेपेटाइटिस बी, पोलियो, गलाघोंटू, काली खांसी, टेटनस, हीमोफिलस इनफ्लून्जा टाइप बी, रोटावायरस, डायरिया, न्योमोकोकल निमोनिया, खसरा, रूबैला एवं जापानी इंसेफलाइटिस मुख्य हैं।उन्होंने समय से टीकाकरण कराकर एवं साफ-सफाई को बढ़ावा देकर इन बीमारियों से बचा जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एसएमओ डॉ चेतन शर्मा ने बताया कि डिप्थीरिया जीवाणु जनित एक संक्रामक रोग है। इस रोग के लक्षण गले में झिल्ली बनना, सांस लेने एवम खाना निगलने में तकलीफ,सरदर्द, आवाज में परिवर्तन, बुखार,गर्दन के आसपास सूजन, नाक से रक्त मिश्रित स्राव आदि है। समय से इलाज नहीं लेने पर ह्रदय एवम तंत्रिका तंत्र को प्रभावित हो सकते हैं। वहीं काली खांसी भी संक्रामक बीमारी है। काली खांसी में व्यक्ति हमेशा खांसता रहता है। इस वजह इसे कुकुर खांसी भी कहा जाता है। दो सप्ताह से अधिक दिनों तक खांसी रहने पर चिकित्सक से जरूर सलाह लेनी चाहिए। इस खांसी के कई लक्षण हैं, इसमें सांस लेने में तकलीफ और गले में घरघराहट शामिल है।
उन्होंने टीकाकरण से संबधित बेसिक जानकारी, टीकाकरण के दौरान क्या-क्या सावधानी बरतनी है, किन बच्चों को कौन-कौन टीका दिया जाना, ड्यूलिस्ट तैयार करने डेटा अपलोड करने आदि कई महत्वपूर्ण जानकारियां दीं।  इस कार्यशाला में विभिन्न विकासखंडों से आए चिकित्सकों एवम पैरा मेडिकल स्टाफ , जिला सर्विलांस अधिकारी सहित समस्त ब्लॉक के चिकित्साधीक्षक, सहयोगी संस्था यूएनडीपी व यूनिसेफ के प्रतिनिधि और अन्य स्वास्थ्यकर्मी आदि मौजूद रहे।
Author: aman yatra

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