ॐ का जप क्यों इतना लाभकारी
सनातन संस्कृति में ॐ का उच्चारण अत्यंत पवित्र एवं प्रभावशाली माना गया है। जिसके तीन अक्षरों में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की साक्षात उपस्थिति है। इसके उच्चारण में अ+उ+म् अक्षर आते हैं, जिसमें 'अ' वर्ण 'सृष्टि' का घोतक है 'उ' वर्ण 'स्थिति' दर्शाता है जबकि 'म्' 'लय' का सूचक है।
सनातन संस्कृति में ॐ का उच्चारण अत्यंत पवित्र एवं प्रभावशाली माना गया है। जिसके तीन अक्षरों में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की साक्षात उपस्थिति है। इसके उच्चारण में अ+उ+म् अक्षर आते हैं, जिसमें ‘अ‘ वर्ण ‘सृष्टि‘ का घोतक है ‘उ‘ वर्ण ‘स्थिति‘ दर्शाता है जबकि ‘म्‘ ‘लय‘ का सूचक है। ॐ के जाप से तीनों शक्तियों का एक साथ आवाहन हो जाता है। ॐ का जाप अनिष्टों का समूल नाश करने वाला व सुख-समृद्धि प्रदायक है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। ॐ कार ब्रह्मनाद है और इस शब्द के स्मरण, उच्चारण व ध्यान से आत्मा का ब्रह्म से संबंध बनता है। गायत्री मंत्र, यज्ञ में आहुतियां देने वाले मंत्र, सहस्त्र नाम सभी अर्चनाएं, आदि सभी ॐ से ही आरम्भ होते हैं।
सर्वशक्तिमान है ॐ
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव ने स्वयं कहा है कि ‘ॐ महामंगलकारी मंत्र है। सबसे पहले मेरे मुख से ओंकार (ॐ) प्रकट हुआ जो मेरे स्वरुप का बोध कराने वाला है। ओंकार वाचक है और मैं वाच्य हूं। यह मंत्र मेरा स्वरुप ही है। प्रतिदिन ओंकार का स्मरण करने से मेरा ही सदा स्मरण होता है। मेरे उत्तरवर्ती मुख से आकार का, पश्चिम मुख से उकार का, दक्षिण मुख से मकार का, पूर्ववर्ती मुख से बिंदु का व मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ।
इस प्रकार पांच अवयवों से एकीभूत होकर वह प्रणव ‘ॐ‘ नामक एक अक्षर हो गया। यह मन्त्र शिव और शक्ति दोनों का बोधक है। इसी से पंचाक्षर मंत्र की उत्पत्ति हुई है। ॐ ही समस्त धर्मों व शास्त्रों का स्त्रोत्र है। गीता के आठवें अध्याय में परमेश्वर श्री कृष्ण ने कहा है ‘मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, योगधारण में स्थित होकर जो प्राणी ॐ का उच्चारण और उसके अर्थ स्वरुप मुझ निर्गुणं ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है।‘
सुख-शान्ति के लिए ॐ
अपरिमित शक्ति व संपन्नता का प्रतीक ॐ ब्रह्म स्वरुप स्वतः सिद्ध शब्द है, जिसके नियमित स्मरण, उच्चारण, ध्यान से सुख-शांति और धन-ऐश्वर्य सभी प्राप्त होकर अनेक रोगों व तनावों से मुक्ति मिलती है। आत्मिक बल मिलता है एवं जीवनशक्ति उर्ध्वगामी होती है। अतः शरीर को तंदरुस्त व मन को स्वस्थ्य बनाने के लिए हमें शांत मन से कुछ समय नियमित रूप से ॐ का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
वास्तुविदों के अनुसार वास्तुदोषों के कारण उत्पन्न हुए अनिष्ट प्रभाव से राहत पाने के लिए भी ॐ का इस्तेमाल लाभकारी है। यह सभी मांगलिक चिन्हों में श्रेष्ठ है। ॐ के उच्चारण से आस-पास के वातावरण में धनात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। नकारात्मक ऊर्जा, बीमारी, चिंता, दुःख आदि सब नष्ट हो जाते हैं।
–अनीता जैन-