।। नारी बिन जग सूना ।।
अस्तित्व धरा की हैं
तुझसे, ऐ नारी ।
हैं ! पहचान
जगत की तुझसे ऐ,नारी
तू नारायणी, तू ही जगदम्बा ।
तू कल्याणी, तू ही विश्व रचयिता ।। 1
नभ,अंबर,क्षितिज और धरा
कुदरत का कण कण करता
तुझको हरदम नमन ।
तू जननी,तुझसे हैं पहचान मानव की
कौन रह सकता हैं फिर
अंजान, तेरे चिन्ह पदचिन्ह से ।। 2
शिक्षा,ज्ञान विज्ञान
विकास के हर क्षेत्र में हैं तेरी परचम
की पुकार ।
नारी नही अबला
हैं! जन जन की यही पुकार ।। 3
ऐ,नारी तेरे बिन जग सूना ।
तेरे बिन जग सूना ।।
स्नेहा कृति, (रचनाकार), कानपुर यूपी.