अमन यात्रा, कानपुर देहात : भागदौड़ भरी जिंदगी ने न सिर्फ बड़ों की दिनचर्या को तनावपूर्ण बना दिया है बल्कि बच्चों की जीवनशैली को भी प्रभावित किया है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गई है कि बच्चे अब इसकी चपेट में आ रहे हैं। अध्ययनों में सामने आया है कि बस्तों के बोझ के साथ-साथ बच्चों के दिमाग पर तनाव इस कदर बढ़ गया है कि उनसे मानसिक और शारीरिक विकास में बाधाएं आने लगी हैं साथ ही उनके व्यवहार में भी बदलाव आने लगे हैं।
आज के दौर में विभिन्न विषयों पर भरपूर जानकारी हमें आसानी से इंटरनेट, किताबों व शिक्षकों से मिल जाती है लेकिन हम ठीक से यह नहीं सीख पाते हैं कि रोजमर्रा की कठिनाइयों से कैसे निपटा जाए। स्कूली शिक्षा निश्चित रूप से बच्चों को विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान करती है लेकिन उन्हें यह नहीं सिखाती है कि अनदेखी और अपरिचित परिस्थितियों से कैसे निकला जाए। कभी-कभी मन में कई सवाल उठते हैं कि स्कूलों में पढ़े जाने वाले विषयों से जुड़ी जानकारी को अपने निजी जीवन में कैसे लागू करना चाहिए। अफसोस की बात यह है कि यह हमारे स्कूलों के लिए चिंता का विषय नहीं रहा है। हालाँकि नई शिक्षा नीति 2020 में कहा गया है कि पाठ्यक्रम को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए। इसी ध्यान में रखते हुए
परिषदीय विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य के आकलन हेतु मनोविज्ञानशाला के निदेशक ने सभी जनपदों के बेसिक शिक्षाधिकारियों को निर्देशित किया है कि सभी प्रधानाध्यापक शिक्षक/शिक्षिकाओं के सहयोग से अपने अपने स्कूलों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य का आकलन करते हुए संबंधित जानकारी जल्द से जल्द उपलब्ध कराएं।