साहित्य जगत
डायरी के पन्ने (अपराध और नशा)- भाग पहला
हमारे समाज में जो भी घटनाएं होती आ रही रहा है? देश दुनियां की राजनीतिक में होता आ रहा है? हमारी परम्परा हमारी संस्कृति को तोड़-मरोड़ आडंबर बना दिया जाता है ,एवं समाज में गलत धारणाएं फैला दी जाती है?
हमारे समाज में जो भी घटनाएं होती आ रही रहा है? देश दुनियां की राजनीतिक में होता आ रहा है? हमारी परम्परा हमारी संस्कृति को तोड़-मरोड़ आडंबर बना दिया जाता है ,एवं समाज में गलत धारणाएं फैला दी जाती है? धन जीवन जीने के लिए नही बल्कि जमाकर अमीर बनने के लिए होता जा रहा हो? ऐसी परिस्थित में सिर्फ एक बात मुझे समझ आती है कि, आज की परिस्थिति को देखते हुए सामाजिक सांस्कृतिक, नैतिक ,राजनीतिक स्थिति में आ रही विकृति से यही लगता है कि ,हमारे समाज को एक ऐसे विद्यालय की आवश्यकता है जो इंसानियत का पाठ पढ़ा सकें जो इंसानों को इंसान बना सकें?
ईश्वर ने अलग-अलग जीव बनाएं , अलग-अलग जानवरों में अलग-अलग गुण और प्रकृति देखकर रचना की, मगर इंसानों को बुद्धि के साथ-साथ उसमें सभी जानवर के गुण भी दिए ?, गिरगिट की तरह रंग बदलना, आस्तीन के सांप के जैसा व्यवहार करना, सियार की तरह चापलूसी करना, मछली की तरह बड़े लोगों के द्वारा छोटे लोगों को खाते जाना आदि आदि जानवरों के गुण मनुष्य में विद्यमान है ,जो मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देकर एक ऐसा जानवर बनाती है जिसमें सारे दुर्गुण मौजूद है ?
अगर ऐसा नहीं होता तो सदियों से रामायण, महाभारत ,प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध जैसी घटनाएं नही होती?
इन सब चीजों को देखकर ऐसा लगता है कि, हमारे समाज को सबसे ज्यादा अगर किसी चीज को की जरूरत है तो वह है ऐसे विद्यालय या ऐसी शिक्षा की जो इंसान को इंसान रहने दे। क्योंकि स्कूलों में जो शिक्षा दी जाती है उससे बच्चे सिर्फ और सिर्फ धन कमाने का रास्ता ढूंढ पाते हैं, बाकी हम अपनी जिंदगी में कैसे जिए? रिश्तो को कैसे निभाए? देश समाज के साथ कैसा व्यवहार करें? यह सब शिक्षा हमें स्कूल में नहीं दी जाती है?
सामाजिक और नैतिक शिक्षा के नाम पर सिर्फ और सिर्फ खानापूर्ति की जाती है जिसमें बच्चे ऐसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जो बच्चों को सिर्फ रुपया कमाने की मशीन बना रहा है चाहे वह कृपया गलत तरीके से ही क्यों न कमाया जाए? यही सीख आज के समय में बच्चे ले रहे हैं? नशा ,अनैतिकता,भौतिकता,स्वार्थ,ने हमेशा से मनुष्य को एक ऐसा जानवर बनाकर रखा हुआ है जिसने पृथ्वी के सभी जीवो को त्रस्त कर रखा है।
आज के समाज में लोगों को गलत तरीके से पैसे कमाने से भी परहेज नहीं है क्योंकि सही तरीके से पैसे कमाने से वह सब हासिल नहीं कर पाता है जो वह हासिल करना चाहता है ?
भौतिकवादी जिंदगी ने लोगों को एक तरह से अंधकार में धकेलता रहा है ? जिसमें सही गलत अच्छा बुरा का भेद समाप्त होता जा है?
मैं इंटर कॉलेज अध्यापिका हूं और मेरी रोजमर्रा की जिंदगी कॉलेज से घर और घर से कॉलेज तक होती है ।साथ ही अपने क्लास और क्लास रूम के बच्चों के बीच मेरी दिनचर्या घटित होती है।
क्रमशः भाग दूसरे में
लेखिका – सुनीता कुमारी, बिहार