कानपुरउत्तरप्रदेशजरा हटकेफ्रेश न्यूज
फाइलेरिया रोगी नेटवर्क से जुड़कर रामवती का जागा आत्मविश्वास
पिछले 30 वर्षों से फाइलेरिया (हाथी पाँव) की असहनीय पीड़ा से गुजर रहीं घाटमपुर के भद्रस गाँव की 60 वर्षीया रामवती का आत्मविश्वास एक समय पूरी तरह से टूट चुका था लेकिन आज वह खुद से अपने प्रभावित अंगों की समुचित देखभाल करने के साथ ही दूसरों को भी इससे बचाने की मुहिम में जुटी हैं।

- अपने पैरों की समुचित देखभाल के साथ ही दूसरों को भी इससे बचाने में जुटीं
- समुदाय को साल में एक बार आशा के सामने ही दवा खाने को कर रहीं प्रेरित
अमन यात्रा, कानपुर : पिछले 30 वर्षों से फाइलेरिया (हाथी पाँव) की असहनीय पीड़ा से गुजर रहीं घाटमपुर के भद्रस गाँव की 60 वर्षीया रामवती का आत्मविश्वास एक समय पूरी तरह से टूट चुका था लेकिन आज वह खुद से अपने प्रभावित अंगों की समुचित देखभाल करने के साथ ही दूसरों को भी इससे बचाने की मुहिम में जुटी हैं। वह कहती हैं कि उनमें यह आत्मविश्वास फाइलेरिया रोगी नेटवर्क से जुड़ने के बाद जागा है और अब उनका यही प्रयास है कि जिस पीड़ा से उन्हें गुजरना पड़ा उससे किसी और को न गुजरना पड़े। समुदाय को जहाँ वह फाइलेरिया से बचने के लिए साल में एक बार दवा सेवन की सलाह देती हैं वहीँ फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को प्रभावित अंगों की समुचित देखभाल के टिप्स भी देती हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीम का भी सहयोग करती हैं ।
रामवती अपनी बोलचाल की भाषा में कहती हैं – “ पैर की हर रोज साफ़-सफाई करित हा , साबुन और मलहम लगायित हैं फिर साफ़ पानी से धुलकर अच्छे से पोछ लेइत हा। बिना नागा किये रोज व्यायाम भी करित हैं यही लिये हमका बहुत आराम मिला है। हमका पहिले बहुत दर्द रहत राहय पर जब से साफ सफाई और व्यायाम करें लगन हैं तब से हमका दिक्कत नयी होत है।“
रामवती बताती हैं कि लगभग 30 साल पहले शरीर में दर्द शुरू हुआ । आए दिन बुखार भी आ जाता था। शुरूआती दिनों में इसे खास तवज्जो नहीं दिया और गांव के अप्रशिक्षित चिकित्सक से इलाज करा लेती थी। कुछ वक्त के लिए आराम भी मिल जाता था। बाद में जब असहनीय दर्द व बुखार होने लगा तो नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में दिखाया। कुछ सालों बाद फिर बुखार, दर्द के साथ उसके बाएं पैर में सूजन आने लगी। लापरवाही के चलते मर्ज बढ़ता गया। दाहिने पैर में हाथीपांव हो गया। स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा जब बताया गया कि यह तो फाइलेरिया है तभी रामवती ने परिवार के साथ जाकर निजी चिकित्सालय में ऑपरेशन करवा लिया। इससे स्थितियां और बिगड़ गयीं जिससे उनका आत्मविश्वास डगमगा गया ।
रामवती बताती हैं कि वर्षों से उठने-बैठने व चलने- फिरने में दिक्कत के साथ जिन्दगी गुजारनी पड़ रही थी । किसी के भी साथ उठना – बैठना छोड़ दिया था पर जब से फाइलेरिया नेटवर्क से जुड़ीं हूँ एक अलग सा आत्मविश्वास मिला है। मन में भ्रम था कि यह छुआछूत की बीमारी है पर अब वह भ्रम भी दूर हो गया है । अब नियमित व्यायाम कर रही हूं जिससे पैर की सूजन भी कम हो रही है। मेरी स्थिति अब स्थिर है रोग अधिक नहीं बढ़ पा रहा धीरे-धीरे नियमित व्यायाम से मुझे चलने फिरने की दिक्कतों से भी निजात मिली है। अब पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ उठती -बैठती हूँ और उनको फाइलेरिया से बचाव की दवा खाने के लिए प्रेरित करती रहती हूँ ।
वह कहती हैं कि अब विभाग द्वारा दिये गए रुग्णता प्रबंधन प्रशिक्षण से यह बात बखूबी समझ आ गयी है कि फाइलेरिया अब ठीक तो नहीं होगा क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन फाइलेरिया ग्रसित अंग की समुचित साफ़ – सफाई, उचित देखभाल और व्यायाम से इसको नियंत्रित जरूर किया जा सकता है | यही बात जनसमुदाय तक पहुंचा रहीं हूँ और अपील कर रही हूँ कि राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के दौरान साल में एक बार दवा का सेवन जरूर करें। यह दवा आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर अपने सामने खिलाती हैं | इसलिए फाइलेरिया बीमारी से बचना है तो दवा जरूर खाएं।
मच्छरों से बचाव भी बहुत जरूरी :
जिला मलेरिया अधिकारी एके सिंह का कहना है कि फाइलेरिया मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होने वाली एक संक्रामक बीमारी है। एक परिवार में अगर कोई मरीज है तो दवा न खाने से अन्य सदस्य भी उससे प्रभावित हो सकते हैं। दो साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और अति गंभीर रोग से पीड़ित व्यक्तियों को छोड़कर यह दवा सभी को खानी है। यह दवा खाली पेट नहीं खाना है। यह दवा स्वास्थ्य कर्मी व आशा दीदी के सामने ही खाना है।
Discover more from अमन यात्रा
Subscribe to get the latest posts sent to your email.