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हिन्दी भाषा को उसका गरिमामय स्थान प्रदान करना आज की आवश्यकता-प्रो स्वाईन

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर में संस्थान में कार्यरत लगभग 40 से अधिक तकनीकी अधिकारियों को सरकारी काम-काज में हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में ए डब्ल्यू ई आई एल मुख्यालय, रक्षा मंत्रालय, कालपी रोड, कानपुर से पधारे आमंत्रित विद्वान अतिथि श्री हरीश कुमार गुप्ता थे

अमन यात्रा ब्यूरो।राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर में संस्थान में कार्यरत लगभग 40 से अधिक तकनीकी अधिकारियों को सरकारी काम-काज में हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में ए डब्ल्यू ई आई एल मुख्यालय, रक्षा मंत्रालय, कालपी रोड, कानपुर से पधारे आमंत्रित विद्वान अतिथि श्री हरीश कुमार गुप्ता थे।
मां वीणापाणि को माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के उपरांत निदेशक, प्रो.डी.स्वाईन द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। प्रो. स्वाईन ने कहा कि समय की मांग है कि हमको हिंदी भाषा को उसका गरिमामय स्थान प्रदान करना चाहिये। संविधान निर्माण के समय कार्यालय में काम काज में आसानी के लिये कुछ समय तक हिंदी के साथ अंग्रेजी के प्रयोग का प्रावधान किया गया था, लेकिन आज आजादी के बाद काफी लंबा समय बीत जाने पर भी स्थितियां बदली नहीं हैं। हर कार्यालय में अंग्रेजी के प्रति लगाव देखा जा सकता है। अंग्रेजी का ज्ञान बुरा नहीं है, लेकिन उसका प्रयोग जहां उचित हो वहीं किया जाना चाहिये। हिंदी भाषा-भाषी क्षेत्रों में तो विशेष रूप से हिंदी में ही काम काज को प्रोत्साहन दिया जाना उचित होगा, तभी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगें।

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श्री हरीश कुमार गुप्ता ने संविधान की विभिन्न धाराओं-उपधाराओं का उल्लेख करते हुये इसके प्रयोग के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। श्री गुप्ता ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी का भी मास्टर बनायें। हिंदी अब बेचारी नहीं रही है। इसका वैश्विक विस्तार अब बढ़ रहा है। विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली अंग्रेजी उसके बाद मंदारिन और फिर अपनी हिंदी का स्थान है। श्री गुप्ता ने कहा कि खेद है कि इस गणना में हिंदी की सहयोगी विविध बोलियों को नहीं शामिल किया गया है, जबकि मंदारिन के साथ ऐसा नहीं है। यदि इस सर्वेक्षण में मंदारिन के समान गणना की जाये तो विश्व के समस्त भू-भाग में फैले हिंदुस्तानियों का मान बढ़ाते हुये हम दूसरे स्थान पर होंगें। जैसे स्त्री के माथे की बिंदी उसके सौंदर्य में कई गुना अभिवृद्धि कर देती है, उसी प्रकार हिंदी के माथे की बिंदी भी इसका विश्व में मान बढ़ा रही है। हर्ष का विषय है कि विदेशों में भी हिंदी को पढ़ाया और बढ़ाया जा रहा है।
कार्यशाला में शामिल प्रतिभागियों में से डॉ. सुधांशु मोहन, कनि.वैज्ञानिक अधिकारी, श्री विनय कुमार, सहायक आचार्य शर्करा अभियांत्रिकी, श्री मिहिर मंडल, सहायक आचार्य शर्करा शिल्प आदि ने अपनी कई शंकाओं को विद्वान अतिथि के समक्ष रखा, जिनका निराकरण उन्होंने विस्तार से किया। कार्यक्रम में श्री बृजेश कुमार साहू, वरि.प्रशा.अधिकारी, श्री शैलेन्द्र कु. त्रिवेदी, सहायक आचार्य शर्करा शिल्प, श्री अनूप कु.कनौजिया, सहायक आचार्य शर्करा अभियांत्रिकी, डॉ.अशोक कु.यादव, सहायक आचार्य कृषि रसायन, डॉ.अनंत लक्ष्मी रंगनाथन, सहायक आचार्य जैव रसायन आदि शामिल रहे।
कार्यक्रम के समापन के अवसर पर श्रीमती मल्लिका द्विवेदी, सहायक निदेशक (राजभाषा) ने भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की पंक्तियां – निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल के साथ कार्यशाला में शामिल प्रतिभागियों एवं विद्वान वक्ता का आभार व्यक्त करते हुये धन्यवाद ज्ञापित किया।

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Author: anas quraishi

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