आंगनबाड़ी केंद्रों में नहीं मिलती बच्चों को शैक्षणिक सुविधाएं
आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल शिक्षा केन्द्र शुरू किया गया है। बच्चों को आकर्षित करने के लिए आंगनवाड़ी बाल शिक्षा केन्द्र में रंग बिरंगी साज-सज्जा की गई है। कक्ष में दीवारों पर चार्ट, पोस्टर, कटआउट आदि लगाए गए हैं। बच्चों द्वारा बनाई गई सामग्री का भी प्रदर्शन किया जाता है
कानपुर देहात। आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल शिक्षा केन्द्र शुरू किया गया है। बच्चों को आकर्षित करने के लिए आंगनवाड़ी बाल शिक्षा केन्द्र में रंग बिरंगी साज-सज्जा की गई है। कक्ष में दीवारों पर चार्ट, पोस्टर, कटआउट आदि लगाए गए हैं। बच्चों द्वारा बनाई गई सामग्री का भी प्रदर्शन किया जाता है। बड़े समूह की गतिविधियों के लिये कक्ष के एक कोने में मंच की व्यवस्था रहती है। जहां बच्चे विभिन्न तरह की गतिविधियां प्रस्तुत कर सकें। बाल शिक्षा केंद्र के कक्ष के अंदर का वातावरण छोटे बच्चों की रूचि एवं विकासात्मक आवश्यकताओं के अनुसार बनाया गया है। बच्चों के खेलने के लिये अलग-अलग कोने जैसे गुड़िया घर का कोना, संगीत का कोना, कहानियों का कोना, विज्ञान एवं पर्यावरण प्रयोग का कोना आदि बनाए गए हैं सरकार की तरफ से इसके लिए भारी भरकम धनराशि भी प्रदान की गई है फिर भी लोग आज भी आंगनबाड़ी केंद्रों को पंजीरी वितरण केंद्र ही मानते हैं शायद ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अधिकांश आंगनबाड़ी केंद्र समय से खुलते ही नहीं है यदि कुछ खुलते भी हैं तो आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां बच्चों को पढ़ाने में कोई भी रुचि नहीं दिखाती हैं। वहीं दूसरी ओर कक्षा एक में छह वर्ष से कम आयु के बच्चों का नामांकन नहीं करने के आदेश से परिषदीय स्कूलों में इस सत्र में छात्र संख्या कम होने की आशंका है। छह वर्ष से कम आयु के बच्चों का निजी स्कूल धड़ल्ले से नामांकन कर रहे हैं।
इन स्कूलों में नर्सरी, एलकेजी और यूकेजी जैसी कक्षाओं के विकल्प मौजूद हैं लेकिन आंगनबाड़ी केन्द्रों जिसे बाल वाटिका भी कहा जा रहा है के प्रति लोगों को अधिक विश्वास नहीं है। स्कूल शिक्षा महानिदेशक एवं शिक्षा निदेशक बेसिक ने नई शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में आदेश दिया है कि परिषदीय स्कूलों में कक्षा एक में प्रवेश के लिए बच्चे की आयु छह वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। किसी भी दशा में इनका प्रवेश नहीं हो सकता है। शिक्षक बताते हैं कि ऐसे तमाम बच्चों को वापस भेज दिया गया जिनकी उम्र छह वर्ष से चाहे कुछ दिन ही कम क्यों न रही हो। लोग कहते हैं कि जब तक जिम्मेदार चेतेंगे तब तक बड़ी संख्या में बच्चे निजी स्कूलों में दाखिला करा चुके होंगे।
इन आदेशों ने बढ़ाई शिक्षकों की मुश्किलें-
बिडंबना यह है कि नए सत्र के पहले सप्ताह में शिक्षकों ने गत वर्ष जारी आदेश के अनुसार उन बच्चों को कक्षा एक में प्रवेश दे दिया जिनकी आयु एक जुलाई 2024 को छह वर्ष पूरी हो रही थी लेकिन 9 अप्रैल को सामने आए बेसिक शिक्षा निदेशक के आदेश में छह वर्ष की आयु पूरी होने की आधार तिथि एक जुलाई की बजाए एक अप्रैल 2024 कर दी गई है। इससे असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। शिक्षकों का कहना है कि एक जुलाई के आधार पर जिन बच्चों का नामांकन कर लिया गया है उन बच्चों के अभिभावकों को क्या जवाब दिया जाएगा।
अब भी पंजीरी बांटने वाले केन्द्र-
सरकार आंगनबाड़ी केन्द्रों को बाल वाटिका केन्द्र के रूप में भले ही विकसित कर रही हो लेकिन लोगों के बीच आंगनबाड़ी केन्द्र अब भी पंजीरी बांटने वाले केन्द्र के रूप में ही चर्चित हैं। निजी स्कूल जहां प्री प्राइमरी कक्षाओं को प्ले ग्रुप, एलकेजी व यूकेजी के रूप में संचालित करते हैं तो वहीं आंगनबाड़ी केन्द्रों में सिर्फ एक कार्यकत्री इतनी कक्षाओं को कैसे संचालित करेगी इस पर भी सवाल है। क्या सरकार जानबूझकर बेसिक शिक्षा को अपंग बनाना चाह रही है या फिर सोची समझी रणनीति के तहत शिक्षकों को बदनाम करने की एक और साजिश रची जा रही क्योंकि जब स्कूलों में छात्र नामांकन में तेजी से गिरावट आएगी तो इसका सारा दोष शिक्षकों पर थोप दिया जाएगा और यह प्रचार प्रसार किया जाएगा कि विद्यार्थियों की ऑनलाइन अटेंडेंस व्यवस्था लागू होने की वजह से शिक्षकों ने जो फर्जी नामांकन कर रखे थे उनके नाम पृथक कर दिए हैं इस कारण से छात्र नामांकन में गिरावट आई है।