
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू हुए पंद्रह साल पूरे हो गए। यह कानून बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने के लिए बनाया गया था लेकिन आज इसका सबसे बड़ा बोझ उन्हीं शिक्षकों पर लादा जा रहा है जिन्होंने दशकों तक स्कूलों में सेवा दी है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य हो गया है। सवाल यह नहीं है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए पात्रता परीक्षा क्यों जरूरी है बल्कि सवाल यह है कि इतने वर्षों में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) और सरकारों ने उन समस्याओं का समाधान क्यों नहीं किया जिनका सामना शिक्षक आज कर रहे हैं। दरअसल, एनसीटीई का गठन ही इस उद्देश्य से किया गया था कि वह शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता और प्रशिक्षण से जुड़े मानक तय करे लेकिन विडंबना यह है कि समय रहते न तो स्पष्ट नीति बनी और न ही व्यावहारिक समाधान।
नतीजा यह है कि अब हजारों शिक्षक असमंजस और तनाव की स्थिति में खड़े हैं। कुछ केवल इंटरमीडिएट योग्यता रखते हैं, वे परीक्षा देने के योग्य ही नहीं हैं। इंटरमीडिएट में 50 प्रतिशत एवं स्नातक में 45 प्रतिशत से कम अंक वाले भी बाहर हो गए। मृतक आश्रित शिक्षक जो बीटीसी जैसे प्रशिक्षण से वंचित रहे, उनके सामने तो नौकरी जाने का संकट खड़ा हो गया है। इतना ही नहीं सीपीएड, डीपीएड और बीपीएड की डिग्री वाले शिक्षक भी पात्रता से बाहर कर दिए गए। सबसे गंभीर सवाल यह है कि 2010 में जब टीईटी अनिवार्य किया गया तो इससे पहले नियुक्त शिक्षकों पर इसे क्यों थोपा जा रहा है? कानून का सामान्य सिद्धांत है कि कोई भी नियम भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं किया जाता।
23 अगस्त 2010 की एनसीटीई अधिसूचना ने भी साफ कहा था कि इस तिथि से पहले नियुक्त शिक्षकों को नई न्यूनतम योग्यता पूरी करने की आवश्यकता नहीं है फिर भी आज उन्हीं शिक्षकों से परीक्षा पास करने की मांग की जा रही है। यह न केवल अन्याय है बल्कि शिक्षा व्यवस्था के नीति-निर्माताओं की लापरवाही का परिणाम भी है। सच यही है कि बीते पंद्रह वर्षों में एनसीटीई और राज्य सरकारों ने अपने दायित्व से पलायन किया। न प्रशिक्षण की ठोस व्यवस्था बनी, न पात्रता मानकों पर स्पष्टता आई। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर सारी जिम्मेदारी शिक्षकों पर डाल दी गई है लेकिन असली दोषियों को जवाबदेह ठहराने की बजाय, शिक्षक फिर से बलि का बकरा बनाए जा रहे हैं।
शिक्षा सुधार का रास्ता शिक्षकों को अपमानित करके नहीं बल्कि उन्हें सशक्त बनाकर निकलेगा। यदि सरकार और एनसीटीई वास्तव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहते हैं तो उन्हें पुराने शिक्षकों के लिए व्यावहारिक और सम्मानजनक समाधान तैयार करना होगा। वरना यह कानून बच्चों की शिक्षा सुधारने के बजाय लाखों शिक्षकों की रोजी-रोटी छीनने का औजार बन जाएगा।
राजेश कटियार
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