कविता
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बालिका दिवस पर विशेष
मेरी बेटी फूल सी कोमल, सुंदर सुकोमल एक छोटी सी कलिका, मेरे आंगन में अवतरित हुई l कहां-कहां की आवाज…
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‘बुढ़ापा’
मां जब जब भी दर्द से कराहती है अजीब सी बेचैनियां मुझे घेरती, नकारती हैं असहाय सी हो जाती हूं…
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।। घर घर की पहचान हैं ये लड़कियां ।।
।। घर घर की पहचान हैं ये लड़कियां ।। आज़ाद पंक्षी सी होती हैं ये लड़कियां हर पंख से एक…
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नेता भईया
कागज की नाव आप चलाएंगे कब तक जनता को पागल बनायेंगे कब तक। कहते हैं हर आंख के आंसू पोंछ…
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मै कौन हूँ
इस जहां में मैं खुद को तलाशता रहा…. मैं कौन हूं… क्या है मेरा वजूद….? बस खुद से किए सवाल…
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मासिक धर्म के नाम पर ये आडंबर क्यूं ??
मासिक धर्म के नाम पर ये आडंबर क्यूं ?? मैं! पूछना चाहती हूं इस समाज धर्म के ठेकेदारों से आखिर!…
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परंपरा की परंपरा का परम्पराओं से बड़ा पुराना नाता, वर्तमान का नवयुवक नहीं इसे निभाता
आज भी परंपराओं को निभाने की परंपरा जिंदा है। पैदा होने से लेकर मरने तक यहां आदमी परंपराओं को निभाता…
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दोस्त तेरे बिना मैं किधर जाऊंगा
दोस्त तेरे बिना मैं किधर जाऊंगा टूट जाऊंगा बिखर जाऊंगा। जिंदगी दर्द बन जाएगी कोई खुशी मेरे पास रह ना…
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मेहनत करते है हम तो कमाने खाने वाले हैं। सुना है अच्छे दिन आने वाले हैं।
मेहनत करते है हम तो कमाने खाने वाले हैं। सुना है अच्छे दिन आने वाले हैं। मेहनत से सब कुछ…
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