Kanpur Shaernama Column: माननीय के पेट में मरोड़…, यहां अधिकारियों को लगने लगा डर
कानपुर में राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे की सप्ताह भर की चर्चाओं को लेकर अाया है शहरनामा कॉलम। आशियाना गंवाने वालों के लिए चुप्पी साध लेने वाले माननीय को टाउनशिप बसाने वालों की फिक्र है। गुपचुप मीटिंग करने के बाद प्रेस नोट जारी करने में भलाई समझते हैं।

कानपुर, अमन यात्रा । कानपुर महानगर में राजनीतिक और प्रशासिनक हलचल बनी रहती है। इन्हीं में कई चर्चाएं ऐसी रहती हैं, जो सुर्खियों नहीं बन पाती हैं। ऐसी चर्चाओं को चुटीले अंदाज में लोगों तक पहुंचाने के लिए है हमारा कॉलम शहरनामा…। आइए पढ़ते है सप्ताह भर की राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे की कुछ रोचक चर्चाएं…।
सेवा कम सिरदर्दी ज्यादा
कोरोना काल में देश को स्वावलंबन की राह पर ले चलने के लिए मोदी सरकार ने आपदा में भी अवसर तलाशने का संकल्प लिया और वोकल फॉर लोकल के प्रति बढ़ती ललक में बेहतर परिणाम की झलक भी दिखने लगी। आपदा में अवसर के मोदी के नारे को शहर में भगवा दल के नेताओं ने भी बड़े अच्छे से आत्मसात किया, मगर स्वार्थी होकर। वैक्सीनेशन के प्रति लोगों को जागरूक करने की मंशा से दल की ओर से शहर के बड़े अस्पताल में सेवा शिविर लगा। बड़े नेता जुटे, वैक्सीनेशन कराने वालों का हौसला बढ़ाया, मगर इन सबके बीच कुछ बड़े पदाधिकारी सूची बनाकर डॉक्टरों पर 60 से कम उम्र वालों को वैक्सीन लगवाने का दबाव बनाते भी दिखे। कुछ डाक्टरों ने वैक्सीनेशन की राह निकालने से इन्कार कर दिया तो कुछ अर्दब में आकर मजबूर हुए, लेकिन सबकी जुबान पर यही था कि यह सेवा कम सिरदर्दी ज्यादा है।
माननीय के पेट में मरोड़
शहर के व्यस्त बाजार में जर्जर मकान ढहने से आशियाना गंवाने वालों के लिए कई रोज तक आंदोलन करने और बिना कोई समाधान निकले चुप्पी साध लेने वाले माननीय को अब आम रास्तों को दबाकर टाउनशिप बसाने वालों की फिक्र हो रही है। मुश्किल यह कि वह फिक्र को सरेआम नहीं कर सकते। एक वजह तो यह है कि मामला इनके विधानसभा क्षेत्र का नहीं है और दूसरी वजह है, सरकारी जमीन कब्जाने वालों का पैरोकार होने का लांछन कहीं विपक्षी न उन पर चस्पा कर दें। अपनी फिक्र का इजहार मामले को बेपर्दा करने वालों से करके गुजारिश करते हुए ये कहने से नहीं हिचकते कि क्या प्राण ही ले लेकर रहोगे क्या। आम लोगों के वोट से माननीय होने का सम्मान पाए मान्यवर को अब भला कौन समझाए कि उनको फिक्र आम लोगों की दिक्कत की होनी चाहिए न कि उनके रास्ते बंद कैद कर लेने वालों की।
कलाकार के आगे धुली दबंगई
विरासत में मिली सियासत से अब तक अजेय माननीय की चार साल पहले तक सरकार के मुखिया की खास अनुकंपा से सभी सत्ता प्रतिष्ठानों में तगड़ी दबंगई थी। यही वजह है कि उनकी सत्ता की खुमारी में हनक दिखाने की आदत आज भी है। यह बात जरूर अलग है कि उनको कई मौकों पर अब मुंह की खानी पड़ जाती है। माननीय बीते रोज शहर के एक प्रतिष्ठित कलाकार के शो में फौज फाटे के साथ पहुंच गए थे। माननीय के शिष्टाचार में शो के लिए उनको तीन से चार लोगों के लिए पास दिए गए थे, लेकिन वह कई गाडिय़ों से करीब आधा सैकड़ा लोगों के साथ पहुंच गए। मुफ्तखोरों की फौज देख कलाकार ने भी शो करने से मना कर दिया। माननीय को तब लगा कि रुसवा होकर लौटना पड़ा तो शहर में तगड़ी किरकिरी हो जाएगी, तब मान मनौव्वल के साथ रियायती टिकट ली तब शो हुआ।
नेता और अधिकारियों को लगता है डर
पढ़कर अजीब जरूर लगेगा, लेकिन शहर में पिछले कुछ वर्षों में बड़ी ही तेजी से बढ़ी एक जमात से शहर के तमाम नेता और आला अधिकारी भी थरथराते हैं। आलम यह कि कभी जनता के बीच छाए रहने के लिए जो नेता इस जमात की खुशामद करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे, वे ही अब उनसे कन्नी काटने लगे हैं। दूसरी ओर, कुछ भी काम पूरा होने, शुरुआत करने या फिर तैयारी का ढोल पीटने को जो अधिकारी आगे रहा करते थे, वे भी अब गुपचुप कार्यक्रम या मीटिंग करने के बाद प्रेस नोट जारी करने में भलाई समझते हैं। दरअसल, इन सबों को खौफ इस बात का रहता कि अगर कुछ भी ऐलानिया किया तो इतनी जमात जुटेगी कि उसको संभालना मुश्किल हो जाएगा। शासन व सत्ता शक्ति संपन्न शख्सीयतों के खौफ का यह आलम किसी भी कार्य दिवस में उनके कार्यालयों में देखा भी जा सकता है।

Author: AMAN YATRA
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