कानपुर देहातउत्तरप्रदेशफ्रेश न्यूज

परिषदीय स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती अर्धवार्षिक परीक्षा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिषदीय स्कूलों के छात्रों को भाषा और गणित में निपुण बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। स्मार्ट क्लास रूम, स्मार्ट बोर्ड आदि से शिक्षण को बेहतर बनाने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने पूरी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है।

Story Highlights
  • ज्यादातर स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर ही लिखे जा रहे प्रश्नपत्र, कॉपियों का खर्चा वहन कर रहे गुरु जी

कानपुर देहात। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिषदीय स्कूलों के छात्रों को भाषा और गणित में निपुण बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। स्मार्ट क्लास रूम, स्मार्ट बोर्ड आदि से शिक्षण को बेहतर बनाने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने पूरी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। स्थिति यह है कि कई स्कूलों में छात्रों को प्रश्नपत्र ब्लैक बोर्ड पर चाक से लिखे जा रहे हैं और उत्तर पुस्तिका के रूप में छात्रों ने अपनी कापियों का प्रयोग किया है। शिक्षा विभाग छात्रों को डिजिटल और तकनीक युक्त बनाने का दंभ जरूर भर रहा है जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि परिषदीय स्कूलों में परीक्षा कराने से लेकर प्रश्नपत्र छपवाने और उत्तर पुस्तिका की व्यवस्था की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है जिसे वह स्वयं वहन कर रहे हैं।

AD AGRVAL
विज्ञापन

अधिकारियों की उदासीनता का व्यवस्था पर कितना बड़ा असर पड़ सकता है इसे परिषदीय विद्यालयों में चल रही अर्धवार्षिक परीक्षाओं के इंतजाम से समझा जा सकता है। शासन ने इन विद्यालयों में अर्धवार्षिक परीक्षाओं के निर्देश तो जारी कर दिए लेकिन हाल यह है कि अधिकांश जिलों में प्रश्नपत्र तक का इंतजाम नहीं किया गया।परिषदीय विद्यालय शिक्षा प्रदान करने के प्राथमिक केंद्र हैं जहां छात्र-छात्राओं को संसाधन महैया कराने के प्रति अधिकारियों को गंभीर होना होगा।

AD HOMYO
विज्ञापन

परीक्षाओं के संबंध में औपचारिकताओं का निर्वहन नहीं किया जा सकता इसके लिए हर स्तर पर तैयारी होनी चाहिए। अव्यवस्था की स्थिति छात्रों को भी परीक्षाओं के प्रति उदासीन कर देती है और इसका असर उन छात्रों पर भी पड़ता है जो मेधावी हैं और पूरी मेहनत से परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

AD SADHANA
विज्ञापन

परिषदीय विद्यालय प्राथमिक शिक्षा की रीढ़ हैं जहां विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे अध्ययनरत हैं। नई शिक्षा नीति के तहत इन विद्यालयों में स्मार्ट क्लास समेत अन्य आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराने की बातें कही जाती रही हैं लेकिन इसका लाभ छात्रों को तभी मिल सकता है जब अधिकारी शासकीय निर्देशों को ईमानदारी से अमल में लाएं। विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों का कहना है कि इस साल प्रश्नपत्र के लिए बजट नहीं आया है। उन्हें स्वयं से ही इसकी व्यवस्था करने के निर्देश दिये गए हैं।

AD SUNITA
विज्ञापन

इस बात की जांच होनी चाहिए कि बजट क्यों नहीं आवंटित हो सका और इसके लिए व्यवस्था में गड़बड़ी कहाँ हुई। स्कूल शिक्षा महानिदेशक यदि यह कहते हैं कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को प्रश्नपत्र छपवाकर परीक्षा कराने के निर्देश दिये गए थे तो उन्हें यह जवाब भी लेना चाहिए कि ऐसा क्यों नहीं हुआ। गड़बड़ी किसी भी स्तर पर हो प्रभावित तो छात्र ही होता है आखिर इसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाए यह एक बड़ा सवाल है।

AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

SABSE PAHLE


Discover more from अमन यात्रा

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Related Articles

AD
Back to top button

Discover more from अमन यात्रा

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading