परिषदीय स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती अर्धवार्षिक परीक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिषदीय स्कूलों के छात्रों को भाषा और गणित में निपुण बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। स्मार्ट क्लास रूम, स्मार्ट बोर्ड आदि से शिक्षण को बेहतर बनाने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने पूरी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है।

- ज्यादातर स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर ही लिखे जा रहे प्रश्नपत्र, कॉपियों का खर्चा वहन कर रहे गुरु जी
कानपुर देहात। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिषदीय स्कूलों के छात्रों को भाषा और गणित में निपुण बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। स्मार्ट क्लास रूम, स्मार्ट बोर्ड आदि से शिक्षण को बेहतर बनाने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने पूरी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। स्थिति यह है कि कई स्कूलों में छात्रों को प्रश्नपत्र ब्लैक बोर्ड पर चाक से लिखे जा रहे हैं और उत्तर पुस्तिका के रूप में छात्रों ने अपनी कापियों का प्रयोग किया है। शिक्षा विभाग छात्रों को डिजिटल और तकनीक युक्त बनाने का दंभ जरूर भर रहा है जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि परिषदीय स्कूलों में परीक्षा कराने से लेकर प्रश्नपत्र छपवाने और उत्तर पुस्तिका की व्यवस्था की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है जिसे वह स्वयं वहन कर रहे हैं।

अधिकारियों की उदासीनता का व्यवस्था पर कितना बड़ा असर पड़ सकता है इसे परिषदीय विद्यालयों में चल रही अर्धवार्षिक परीक्षाओं के इंतजाम से समझा जा सकता है। शासन ने इन विद्यालयों में अर्धवार्षिक परीक्षाओं के निर्देश तो जारी कर दिए लेकिन हाल यह है कि अधिकांश जिलों में प्रश्नपत्र तक का इंतजाम नहीं किया गया।परिषदीय विद्यालय शिक्षा प्रदान करने के प्राथमिक केंद्र हैं जहां छात्र-छात्राओं को संसाधन महैया कराने के प्रति अधिकारियों को गंभीर होना होगा।

परीक्षाओं के संबंध में औपचारिकताओं का निर्वहन नहीं किया जा सकता इसके लिए हर स्तर पर तैयारी होनी चाहिए। अव्यवस्था की स्थिति छात्रों को भी परीक्षाओं के प्रति उदासीन कर देती है और इसका असर उन छात्रों पर भी पड़ता है जो मेधावी हैं और पूरी मेहनत से परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

परिषदीय विद्यालय प्राथमिक शिक्षा की रीढ़ हैं जहां विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे अध्ययनरत हैं। नई शिक्षा नीति के तहत इन विद्यालयों में स्मार्ट क्लास समेत अन्य आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराने की बातें कही जाती रही हैं लेकिन इसका लाभ छात्रों को तभी मिल सकता है जब अधिकारी शासकीय निर्देशों को ईमानदारी से अमल में लाएं। विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों का कहना है कि इस साल प्रश्नपत्र के लिए बजट नहीं आया है। उन्हें स्वयं से ही इसकी व्यवस्था करने के निर्देश दिये गए हैं।

इस बात की जांच होनी चाहिए कि बजट क्यों नहीं आवंटित हो सका और इसके लिए व्यवस्था में गड़बड़ी कहाँ हुई। स्कूल शिक्षा महानिदेशक यदि यह कहते हैं कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को प्रश्नपत्र छपवाकर परीक्षा कराने के निर्देश दिये गए थे तो उन्हें यह जवाब भी लेना चाहिए कि ऐसा क्यों नहीं हुआ। गड़बड़ी किसी भी स्तर पर हो प्रभावित तो छात्र ही होता है आखिर इसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाए यह एक बड़ा सवाल है।
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