बांदा में सदानीरा बागै नदी प्रवाहित जल की कमी से धीरे-धीरे नाले में तब्दील होती जा रही, जिससे इन गांवों में मंडराने लगा संकट
एक समय ये भी है जब जीवनदायिनी नदियों भूगर्भ जल स्रोतों को हम अंधाधुंध तरीक़े से दूषित कर रहे है। दूसरी तरफ व्यवसायिक कंपनियां हमे पेयजल दूध से ज्यादा कीमत पर बेच रही हैं तब आगे आकर इन नदियों को बचना हम सबकी जिम्मेदारी है

कानपुर, अमन यात्रा। सदानीरा कही जाने वाली जिले की प्रमुख नदियों में से एक बागै नदी का जलस्तर गर्मी की शुरुआत होते ही घटने लगा। प्रवाहित जल की कमी के चलते यह नदी नाले में तब्दील होती दिख रही है। ऐसे मेंं अगर इस नदी को ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में दर्जनों गांवों की जीवनदायिनी बागै नदी की जल धारा टूटने का खतरा है।
बुंदेलखंड के लिए जीवनदायिनी कही जाने वाली बागै नदी से उसके किनारे बसे दर्जनों की संख्या में गांवों के बाशिंदों का गुजर बसर चलता है। मध्य प्रदेश में हीरोंं के खदानों के लिए मशहूर पन्ना जिले से निकली बागै ऐसी रत्नगर्भा नदी है, जिसमें कंकड़ पत्थरों के साथ बेशकीमती हीरे भी मिलते हैं और इसकी बदौलत पिछले 5 दशकों में कई किस्मत वालों ने रंक से राजा बनने का सफऱ तय किया है।
मध्य प्रदेश के पन्ना जिला से निकली यह नदी अपने सहयोगी आधा दर्जन छोटी-छोटी नदी-नाले के जरिए बांदा- चित्रकूट के हजारों लोगों को जीवन प्रदान करती है। प्रकृति से जो वस्तुए हमें उपहार में मिली है इनकी कीमत का वस्तविक अंदाजा तब तक नहीं हो पाता जब तक वो हमसे छिन न जाए । एक समय ये भी है जब जीवनदायिनी नदियों, भूगर्भ जल स्रोतों को हम अंधाधुंध तरीक़े से दूषित कर रहे है। दूसरी तरफ व्यवसायिक कंपनियां हमे पेयजल दूध से ज्यादा कीमत पर बेच रही हैं तब आगे आकर इन नदियों को बचना हम सबकी जिम्मेदारी है ।
अवैध खनन से खाली हो रही नदियों की कोख : जिले में तीन प्रमुख नदियां यमुना, केन व बागै हैं। दो दशक पूर्व इन नदियों में जल की धारा 12 महीने अनवरत बहती रहती थी और यह नदियां सदानीर कहलाती थीं। लेकिन अवैध खनन ने नदियों की कोख खाली कर दी। नदियों से इतना खिलवाड़ किया गया कि जिले की जीवन धारा कहलाने वाली नदियों का ही जीवन खतरे में पहुंच गया है। बागै नदी के सामने अब उसके जीवन को बचाए रखने का प्रश्न खड़ा हो चुका है। नदी की धारा नालों में बदल गई गंदगी व बालू की अवैध खनन से इसके के जीवन पर खराब असर पड़ा। कभी बदौसा की प्यास बागै नदी से बुझाई जाती थी, लबालब पानी से भरी रहने वाली नदी में अब नाव की आवश्यकता नहीं है। बच्चे तक बिना नाव के नदी के इस ओर से उस पार आराम से चले जाते है। मौरंग माफियाओं ने नदियों के साथ इतना खिलवाड़ किया कि इनका स्वरूप बिगड़ गया। मार्च माह में ही नदी का जलस्तर नीचे जा चुका है धाराएं सिमटती जा रही हैं, तो आने वाले मई जून की गर्मी में पशुओं व मानव का क्या होगा।
मौरंग होने से फिल्टर होता है पानी : पर्यावरणविदों का मानना है कि नदियों में पानी को साफ सुथरा रखने के लिए मौरंग का होना अति आवश्यक है। क्योंकि मौरंग फिल्टर की तरह काम करती है। कुएं, तालाब और हैंडपंप का जल भी नदी में मौजूद मौरंग की मात्रा पर ही निर्भर करता है। अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बदौसा सहित दर्जनों गांव एक-एक बूंद पानी के लिए तरसेंगे ।
बोले लोग
- बागै नदी यहां के दर्जनों गांव की जीवन रेखा है। इस नदी को बचाने व सहेजने के शासन प्रशासन के साथ साथ आम आदमी को भी आगे आना होगा। स्थानीय लोगों में जागरूकता पैदा करने की कोशिश की जा रही है वर्ना आने वाले समय में लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरस जाऐंगे।
शाहनवाज़ खान शानू, संयोजक, बागै नदी भक्त परिषद
- जल जंगल व जमीन हमारे जीवन के मुख्य आधार हैं हम प्रकृति के सेवक हैं, शोषक नहीं।नदी, नाले, कुआं व तालाब ही हमारे जल के प्रमुख स्त्रोत हैं। जल के बिना आजीविका, पेयजल, पर्यावरण, समाजिक विकास व कृषि इत्यादि सभी प्रभावित होते हैं। इसलिए इन सभी स्त्रोतों का संरक्षण जरुरी है इसलिए नदियों के किनारे वृक्षारोपण, पुरानी दहारों व नदी की गोंद इत्यादि की सफाई कराई जाये व सहायक नालों में वाटर रिचार्जेबल बनाये जाना चाहिए।
अशोक कुमार श्रीवास्तव, संयोजक , संस्था अभियान

Author: AMAN YATRA
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