जिस भी प्रयत्न से चित्त स्थिर हो उसे अभ्यास कहते हैं : डॉ. मिश्र
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के स्कूल आफ हेल्थ साइंसेज में ‘योग सूत्र में समाधि की अवधारणा’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया।
कानपुर,अमन यात्रा। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के स्कूल आफ हेल्थ साइंसेज में ‘योग सूत्र में समाधि की अवधारणा’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह व्याख्यान यूजीसी नेट परीक्षा के पाठ्यक्रम पर आधारित रहा। मुख्य वक्ता डॉ. राम नारायण मिश्र, स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय, देहरादून ने ‘योगसूत्र’ को योग का सबसे प्रमाणिक और आधारभूत ग्रंथ बताया। इस ग्रंथ में चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहा गया है, जिसका अर्थ ‘समाधि’ है। डॉ. मिश्र ने कहा कि जिस भी प्रयत्न से चित्त स्थिर हो उसे अभ्यास कहते हैं। वही वैराग्य पर चर्चा करते उन्होंने कहा कि वैराग्य के दो भेद हैं, ‘पर वैराग्य’ और ‘अपर वैराग्य’। इन दोनों वैराग्यों से समप्रज्ञात और असमप्रज्ञात समाधि की प्राप्ति होती है।
संस्थान निदेशक डॉ. दिग्विजय शर्मा ने कहा कि ध्यान की उच्च अवस्था को समाधि कहते हैं। पतंजलि के योगसूत्र में समाधि को आठवीं अवस्था बताया गया है। डॉ. शर्मा ने बताया कि जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान में अपने अस्तित्व को भूलकर पूरी तरह से डूब जाता है, तो उसे समाधि कहा जाता है। इस अवसर पर उन्होंने कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक का आभार व्यक्त किए, जिनके प्रेरणा और मार्गदर्शन से यह व्याख्यान आयोजित हो पाया। स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज के सहायक आचार्य तथा कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. राम किशोर ने व्याख्यान का कुशल संचालन करते हुए वहां उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। डॉ. दिग्विजय शर्मा ने धन्यावद ज्ञापित किया। इस अवसर पर संस्थान के शिक्षकगण तथा छात्र-छात्राएं मौजूद रहें।