सम्पादकीय
माँ का द्वितीय स्वरूप : “ब्रह्मचारिणी”
नवरात्रि के नौ दिवस हम माता के विभिन्न स्वरूपों की स्तुति करते है, उन्हीं में नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है। नाम के अनुरूप माँ का यह रूप हमें श्रेष्ठ आचरण की प्रेरणा देता है, अर्थात् चरित्रवान बनने पर बल देता है क्योंकि चरित्र की प्रबलता कभी भी हमें पतन के मार्ग की ओर नहीं ले जाती।
नवरात्रि के नौ दिवस हम माता के विभिन्न स्वरूपों की स्तुति करते है, उन्हीं में नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है। नाम के अनुरूप माँ का यह रूप हमें श्रेष्ठ आचरण की प्रेरणा देता है, अर्थात् चरित्रवान बनने पर बल देता है क्योंकि चरित्र की प्रबलता कभी भी हमें पतन के मार्ग की ओर नहीं ले जाती। ब्रह्मचारिणी माँ का वह स्वरूप दर्शाता है जो ब्रह्म में स्थित होकर आचरण करती है। यह स्वरूप हमें भी ब्रह्म का ध्यान करते हुए आचरण करने की शिक्षा देता है।
माँ ब्रह्मचारिणी तप की शक्ति पर बल देती है। वह जीवन में सादगी, सदाचार, सात्विकता एवं संयम के महत्व को उजागर करती है। तप की शक्ति जीवन में भटकाव को कम करती है और हमें सद्चरित्र बनाती है। माँ का यह विशिष्ट स्वरूप हमें दिव्य अनुभूति और असीमित ऊर्जा भी प्रदान करता है। अतः हम दु:ख की अनुभूति से दूर होकर ध्यानमग्न अवस्था में आनंद का अनुभव करते है। माँ ब्रह्मचारिणी का स्वभाव सत, चित और आनंद प्रदान करना है। यदि जीवन में आचरण का अनुशासन हो तो वह हमें सफलता प्रदान करता है। संकल्प की दृढ़ता तो हमने प्रथम दिवस में ही माँ शैलपुत्री से प्राप्त कर ली। ध्यानमग्न होना हमारी एकाग्रता को भी बढ़ाता है और हमें जीवन में सफलता के उच्चतम स्तर पर ले जाता है। माँ के हाथों में कमण्डल और जप की माला दिखाई देती है। नवरात्रि में देवी भगवती के लिए किया गया हवन हमारे शरीर को उत्तम स्वास्थ्य भी प्रदान करता है। हवन से उठने वाला धुआँ हमें रोगाणु, विषाणु एवं किटाणु से मुक्त करता है। विभिन्न सामग्रियों की आहुती हमारे घर का वातावरण शुद्ध बनाती है। व्रत का विधान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। अतः माँ की आराधना हमें शरीर और मन की निर्मलता एवं शुद्धता भी प्रदान करती है। इन त्यौहारों में निहित आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक पक्षों को भी समझने का प्रयास करें। माँ का अन्तर्मन से ध्यान करने का प्रयास करें जिससे जीवन में कार्यों का परिणामों में परिवर्तन निश्चित हो। अतः भावों की माला से माँ के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का ध्यान करें।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)