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क्यों सहानुभूति खो रहे दिल्ली बार्डर पर बैठे किसान? डीयू प्रोफेसर सुनील चौधरी ने बताई असली वजह

तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में लंबे समय से चल रहा किसानों का प्रदर्शन अब सहानुभूति खो रहा है। एक के बाद एक कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं, जो बयां करते हैं कि प्रदर्शन किस हद तक राजनीति से प्रेरित है।

नई दिल्ली,अमन यात्रा । तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में लंबे समय से चल रहा किसानों का प्रदर्शन अब सहानुभूति खो रहा है। एक के बाद एक कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं, जो बयां करते हैं कि प्रदर्शन किस हद तक राजनीति से प्रेरित है। सिंघु बार्डर (कुंडली बार्डर) पर निहंगों ने जो किया, उसके बाद तो प्रदर्शन करने वालों को समाज से माफी मांगनी चाहिए थी, लेकिन बुराई का दायित्व कोई नहीं उठाता। यह कहना है दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुनील चौधरी का।

भारत में अलग-अलग समय पर किए गए कृषि क्षेत्र के बदलाव और उसके प्रभाव को बताया, बल्कि मौजूदा हालात पर भी बात की। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि पालिसी और पालिटिक्स को समझना बेहद जरूरी है। उन्होंने दैनिक जागरण के संपादकीय मंडल के सवालों के जवाब भी दिए।

विमर्श के दौरान उन्होंने समाज हित को सबसे ऊपर रखते हुए कहा कि इस प्रदर्शन ने जनता की सुविधाओं को असुविधाओं में तब्दील में कर दिया है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन के बीच हो रहा अपराध सरकार को तो बदनाम कर ही रहा है, साथ ही असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद कर रहा है।

विशेषज्ञ ने दिए सवालों के जवाब

क्या इस प्रदर्शन का भविष्य उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा?

– चुनाव प्रदर्शन का एक आधार हो सकता है। यह प्रदर्शन कृषि हितैषी न होकर सरकार विरोधी है। कितना लंबा चलेगा, यह निर्धारित नहीं है। सरकार की तरफ से 11 वार्ता के बाद भी इसे लगातार राजनीतिक समर्थन मिल रहा है। नेताओं ने कृषकों की आड़ ले रखी है।

अगर प्रदर्शनकारियों का लक्ष्य सरकार को घेरना है तो निहंगों के कृत्य से सरकार की छवि कैसे खराब होगी?

– राजनीतिक दलों की भूमिका और बाहरी फं¨डग कई मौकों पर सामने आ चुकी है। सरकार के निवेदन ठुकराए जा रहे हैं। निश्चित तौर पर इस तरह की घटनाएं वैश्विक स्तर पर सरकार को बदनाम करती हैं।

निहंग पूरी रात एक व्यक्ति को यातना देते रहे, क्या प्रदर्शन स्थल पर किसी को आवाज नहीं आई?

– किसी भी अच्छे कार्य का श्रेय सभी लेना चाहते हैं, लेकिन जब बदनामी होती है तो हर कोई मुंह छिपाता है। इसे ही तो राजनीति कहते हैं।

सरकार के पास मौके थे, लेकिन फिर भी प्रदर्शन खत्म नहीं कराए गए, ऐसा क्यों?

– असहमति पर विरोध जताना अधिकार है, लेकिन इसमें प्रतिशोध नहीं होना चाहिए। सरकार शायद त्वरित ऐसा फैसला नहीं लेना चाहती।

कुंडली बार्डर पर निहंगों के कृत्य का खुलकर विरोध क्यों नहीं हो रहा है?

राजनीतिक विज्ञान विभाग (दिल्ली विश्वविद्यालय, वैश्विक अध्ययन केंद्र के निदेशक) प्रोफेसर सुनील चौधरी का कहना है कि जिस दिशा में यह प्रदर्शन बढ़ रहा है, ऐसे और भी घटनाक्रम हो सकते हैं। इस कृत्य का समाज के द्वारा और खासतौर से धर्म गुरुओं की तरफ से विरोध होना चाहिए, क्योंकि यह धर्म पर प्रहार है।

विमर्श की मुख्य बातें

  • लाल किले पर हुए उपद्रव के बाद ही यह प्रदर्शन खत्म होना चाहिए था, लेकिन जिद और राजनीति ने ऐसा नहीं होने दिया
  • पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव के चलते इस प्रदर्शन को हवा दी जा रही है
  • प्रदर्शनकारी कुंडली बार्डर की बर्बरता के बाद समाज से माफी मांगने के बजाए मुंह फेरे बैठे हैं

 

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pranjal sachan
Author: pranjal sachan

कानपुर ब्यूरो चीफ अमन यात्रा

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