दशानन का श्रृंगार कर होती जमकर पूजा, यहां जलाए जाते हैं तेल के दिए
एक ओर जहां पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व विजयादशमी पर रावण दहन कर खुशियां मनाई जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर कानपुर के शिवाला क्षेत्र में स्थित देश के एकलौते दशानन मंदिर में विशेष आराधना का दौर जारी है

कानपुर। एक ओर जहां पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व विजयादशमी पर रावण दहन कर खुशियां मनाई जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर कानपुर के शिवाला क्षेत्र में स्थित देश के एकलौते दशानन मंदिर में विशेष आराधना का दौर जारी है। परंपरा के अनुसार, यह मंदिर साल में केवल एक बार दशहरे के दिन ही सुबह खोला जाता है और शाम को एक साल के लिए बंद कर दिया जाता है।
सौ साल पुरानी है परंपरा
शिवाला स्थित इस मंदिर की परंपरा लगभग सौ साल पुरानी है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाराज गुरू प्रसाद शुक्ल ने करवाया था। रावण को प्रकांड पंडित और भगवान शिव का परम भक्त मानते हुए, उन्हें शक्ति के प्रहरी के रूप में कैलाश मंदिर परिसर में प्रतिष्ठित किया गया है।
मंदिर के पुजारी के अनुसार, मान्यता है कि रावण की पूजा से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उन्हें वरदान दिया था कि उनकी की गई पूजा तभी सफल होगी जब भक्त रावण की भी पूजा करेंगे।
सुबह 9 बजे खुले कपाट, उमड़ी भक्तों की भीड़
आज सुबह 9 बजे मंदिर के कपाट खोले गए। मंदिर खुलने से पहले ही भक्तों की लंबी कतार लग गई थी। रावण की प्रतिमा का विशेष साज-श्रृंगार किया गया और फिर आरती हुई। दशानन मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है। श्रद्धालु यहां तेल के दिए जलाकर अपनी मन्नतें मांगते हैं।
रावण भक्त अंजलि गुप्ता ने बताया, “विजयदशमी के दिन मां छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद यहां रावण की आरती होती है। हम यहां सरसों के दीपक और पीले फूल चढ़ाते हैं। यह परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है।”
206 साल पुरानी है प्रहरी प्रतिमा
मंदिर से जुड़ी एक अन्य जानकारी के अनुसार, करीब 206 साल पहले संवत 1868 में तत्कालीन राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था। तभी मां के प्रहरी के रूप में रावण की करीब पांच फुट की मूर्ति स्थापित की गई थी, जो अब इस अनूठी पूजा का केंद्र है। आज शाम को आरती के बाद मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।
Discover more from अमन यात्रा
Subscribe to get the latest posts sent to your email.