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अफसरों व विभागीय आदेशों में दबकर रह गया सरकारी स्कूल का मास्टर

सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के पास बच्चों को पढ़ाने के अलावा कई ऐसे गैर शिक्षकीय काम हैं जिसे करने में उनका 70 से 80 फीसदी समय चला जाता है।

Story Highlights
  • परिषदीय विद्यालयों की शिक्षा सरकार ने कर दी चौपट
  • सरकारी स्कूलों के शिक्षकों पर गैर शैक्षणिक कार्यों का इतना बोझ कि बच्चों को नहीं दे पाते पर्याप्त समय
राजेश कटियार,  कानपुर देहात- सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के पास बच्चों को पढ़ाने के अलावा कई ऐसे गैर शिक्षकीय काम हैं जिसे करने में उनका 70 से 80 फीसदी समय चला जाता है। बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में आदेशों व अन्य आदेशों की बाढ़ के चलते बच्चों की शिक्षा व शिक्षकों का उत्साह गुम होता जा रहा है शासन और प्रशासन के आदेशों के अलावा स्थानीय स्तर पर अधिकारियों के कई आदेशों का पालन शिक्षकों को करना पड़ रहा है। इन आदेशों को कागज में भी उतारने की मजबूरी के चलते बच्चों की पढ़ाई का समय कागजी उलझन में जाया हो रहा है। जिन स्कूलों में शिक्षक कम हैं उन पर यह आदेश और अधिक भारी पड़ रहा है। शिक्षक इन्हीं औपचारिकताओं को पूरा करने व अधिकारियों को दिखाने के लिए उनके अभिलेखीकरण में ही लगा रहता है। नौनिहालों के साथ पढ़ाई में वक्त गुजारने के लिए शिक्षकों के पास वक्त ही नहीं बचता है।
स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता में हो रही गिरावट का पता लगाने के लिए जब मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नेशनल यूनिवर्सिटी इन एजुकेशन प्लैनिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (न्यूप) के जरिए सर्वे कराया तो इसमें पता चला कि देश भर के तमाम राज्यों में शिक्षकों का यही हाल है। सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक शिक्षक केवल 20 प्रतिशत समय ही शिक्षकीय कार्य में दे पाते हैं। बाकी का 80 प्रितशत समय उनका गैर शैक्षणिक कार्य में जाया हो जाता है।
नेशनल यूनिवर्सिटी इन एजुकेशन प्लैनिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (न्यूप) के सर्वे में पता चला कि दूसरे प्रशासनिक विभाग एवं शिक्षा विभाग के आला अधिकारी भी अपने कार्य इन्हीं शिक्षकों से करवाते हैं। इसके साथ ही निर्वाचन आयोग से लेकर स्वास्थ्य विभाग जनगणना सर्वे हो या स्कॉलरशिप से संबंधित कार्य ज्यादातर शिक्षकों के भरोसे ही किए जा रहे हैं जिस कारण शिक्षक शैक्षणिक कार्य में ध्यान नहीं दे पाते और बच्चों को सही तरीके से पढ़ा नहीं पा रहे हैं।
जब इस बारे में शिक्षकों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनका मूल काम बच्चों को पढ़ाना है लेकिन शासन-प्रशासन उनकी ड्यूटी अलग-अलग कामों में लगा देता है। इससे वह शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दे पाते हैं और अधिकारी स्कूलों में निरीक्षण करने आते हैं तो गुणवत्ता खराब होने पर शिक्षकों पर कार्यवाही कर देते हैं जबकि गुणवत्ता खराब करने के लिए अधिकारी ही जिम्मेदार हैं क्योंकि वह शिक्षकों को पढ़ाने का मौका ही नहीं देते।
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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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