कविता

छोड़ दूँ क्या…..?

मिली असफलताएँ, हौसला तोड़ दूँ क्या? बहती उल्टी धारा, तैरना छोड़ दूँ क्या?

मिली असफलताएँ,

हौसला तोड़ दूँ क्या?

बहती उल्टी धारा,

तैरना छोड़ दूँ क्या?

नहीं होती हार,

जो करता कोशिश बारम्बार,

आख़िर चींटी चढ़ जाती लेकर भार,

जूझना छोड़ दूँ क्या?

मिली चुनौतियाँ,

सपने तोड़ दूँ क्या?

अब आ गए मझधार,

रास्ता मोड़ दूँ क्या?

मिली उसे मंज़िल,

जिसने गिने मील के पत्थर हज़ार,

आख़िर कछुआ कर गया पाला पार,

चलना छोड़ दूँ क्या?

मिली ज़िम्मेदारियाँ,

नज़रें मोड़ दूँ क्या?

बढ़ने लगा बोझ,

भरोसा तोड़ दूँ क्या?

वही है इंसान,

जो दूसरों के दर्द को अपना ले मान,

कर दिया जिसने सब कुछ क़ुर्बान,

अपना फ़र्ज़ छोड़ दूँ क्या?

मिली हतासाएँ,

उम्मीदें तोड़ दूँ क्या?

चुभने लगा संसार,

दुनिया छोड़ दूँ क्या?

हैं आती ख़ुशियाँ,

जिसे मिला अपनों का प्यार,

घोंसले से ही करा देती उड़ने को तैयार,

पंख फैलाना छोड़ दूँ क्या?

होते मतभेद,

संयम तोड़ दूँ क्या?

हो रही ओछी राजनीति,

भाईचारा छोड़ दूँ क्या?

है महकता,

कई रंगबिरंगे फूलों से अपना प्यारा देश,

मिले यदि स्वार्थ भरे उपदेश,

गुलदस्ता तोड़ दूँ क्या?

                                                       मोहम्मद ज़ुबैर, चाँदापुर, कानपुर देहात

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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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