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गैर शैक्षणिक कार्यों से शिक्षकों को मुक्त करे सरकार, बाकी नहीं चाहिए पुरस्कार

परिषदीय विद्यालयों में नौनिहालों को उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिए सरकार भले ही प्रयास कर रही हो लेकिन शिक्षकों को सौंपे जाने वाले गैर शैक्षणिक कार्यों ने शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया है। इन कार्यों से शिक्षक परेशान रहते हैं साथ ही कक्षाओं का संचालन भी प्रभावित होता है।

Story Highlights
  • आदेशों की बाढ़ में कहीं खो सी गई है शिक्षा की राह
  • औपचारिकताओं को पूरा करने में गुम होने लगा शिक्षकों का उत्साह
  • संख्या अधिक होने से सबकी निगाह में परिषदीय शिक्षक
  • एक जान कई सारे काम, पुराने के साथ नई योजनाएं पड़ रहीं भारी

कानपुर देहात। परिषदीय विद्यालयों में नौनिहालों को उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिए सरकार भले ही प्रयास कर रही हो लेकिन शिक्षकों को सौंपे जाने वाले गैर शैक्षणिक कार्यों ने शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया है। इन कार्यों से शिक्षक परेशान रहते हैं साथ ही कक्षाओं का संचालन भी प्रभावित होता है।

 

देश की बुनियाद बनाने वाले शिक्षकों का दर्जा भले ही ईशतुल्य हो लेकिन आजकल उसका दर्जा उससे छिनने लगा है। गांवों में काम करने के लिए माहौल की तलाश कर रहे शिक्षकों को शिक्षा बड़ा काम लगने लगी है। आए दिन नए फरमान, योजनाएं और ब्यूरोक्रेसी ने शिक्षक और शिक्षण दोनों को प्रयोगशाला बना दिया है। शिक्षकों के हाथ में अब शायद कुछ नहीं रहा। सिर्फ आदेशों का पालन ही उनकी नियति बन गया है। यह दर्द शिक्षकों के दिल से निकला है। दशकों पहले शिक्षकों के पास न तो एमडीएम था और न ही पोलियो। न तो डीएम साहब का डर था और न ही विभाग के हाकिम का। अब मामला उलट है। बेसिक शिक्षकों का कहना है कि हमें शिक्षक पुरस्कार नहीं चाहिए हमें तो केवल गैर शैक्षणिक कार्यों से मुक्ति चाहिए।

 

शैक्षणिक कार्यों में लगे होने की वजह से अन्य विभागों के लोग शिक्षकों को नकारा समझते हैं जबकि विभाग में सभी शिक्षक नकारा नहीं हैं। अन्य विभागों में बेसिक शिक्षा विभाग से अधिक लोग नकारे मौजूद हैं। शिक्षकों का तर्क है कि हमारी संख्या अधिक होने से हम सभी लोगों की नजरों में आ जाते हैं। दूसरे विभागों के निरीक्षण में भी आए दिन कर्मचारी और अधिकारी गैरहाजिर मिलते हैं लेकिन उनका दस प्रतिशत काफी कम होता है। जिले में करीब पांच हजार शिक्षकों का दस प्रतिशत पांच सौ होता है। यह संख्या निरीक्षण के दौरान काफी बड़ी दिखती है। शिक्षकों की टीस है कि विभाग और शासन का यह अविश्वास ठीक नहीं है।

जमीनी हकीकत की बात करें तो परिषदीय स्कूलों के शिक्षक अपने मन मुताबिक स्कूल में कोई भी कार्य नहीं कर सकते हैं। हर बिन्दु के लिए एक आदेश उनका इंतजार कर रहा है। बेसिक शिक्षकों के चेहरों में तैर रही इस बेचैनी को साफ देखा जा सकता है। स्कूलों में टीएलएम (टीचर लर्निंग मैटेरियल) की जगह अधिकारियों के आदेश साफ देखे जा सकते हैं। शिक्षक और हेडमास्टरों के हाथ में अब कुछ भी नहीं है। सब कुछ तिथिवार पहले से तय हैं। साफ बता दिया गया है कि आज यह करना है, कल वह करना है। शिक्षकों का पूरा दिन इसी उधेड़बुन में गुजर रहा है। शासन और विभागीय स्तर पर स्कूलों में होने वाले कई आयोजनों के बाबत पूर्व में ही आदेश दिए जा चुके हैं। माह के कई दिन इन्हीं औपचारिकताओं को पूरा करने और अधिकारियों को दिखाने के लिए उनका अभिलेखीकरण में बीत रहे हैं। जिला और ब्लॉक स्तर पर अधिकारियों के आदेश इन कड़ियों को और लंबा कर रहे हैं। नौनिहालों के साथ स्वस्थ तन और मन से वक्त गुजारने के लिए सहमे शिक्षकों के पास समय नहीं है। न तो शासन स्तर पर और न ही विभागीय स्तर पर शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों के विवेक पर कुछ नहीं छोड़ा गया है। शिक्षकों को दर्द है कि वह काफी समय से शिक्षण के लिए अच्छा माहौल तलाश रहे हैं लेकिन वह दिख नहीं रहा है।
नहीं हैं बुनियादी सुविधाएं-
शिक्षक ऐसे माहौल में काम कर रहे हैं जहां दूसरे विभाग के अधिकारी या कर्मचारी बैठना तक पसंद नहीं करेंगे। बिजली, स्वच्छ पेयजल, बिना वाटर वायरिंग वाली शौचालय व्यवस्था और क्लर्क व चपरासी के बिना स्कूलों में कोई कैसे काम करेगा। शिक्षक गांवों में बिना सुविधाओं के काम कर रहे हैं। उस पर भी प्रधानों से मिड-डे-मील की जंग व गैर जागरूक अभिभावकों से भिड़ंत करने के बावजूद शिक्षक सबके निशाने पर हैं।

गैर शैक्षणिक कार्य जिसमें उलझे रहते मास्टर साहब-
● बालगणन ● स्कूल चलो अभियान ● छात्रवृत्ति के फार्म भराना ● बच्चों के बैंकों में अकाउन्ट खुलवाना ● ड्रेस वितरण कराना ● मिड डे मील बनवाना ● निर्माण कार्य कराना ● एसएमसी की बैठक कराना ● पीटीए की बैठक कराना ● एमटीए की बैठक कराना ● ग्राम शिक्षा समिति की बैठक ● रसोइयों का चयन कराना ● लोक शिक्षा समिति के खाते का प्रबंधन ● एसएमसी के खाते का प्रबंधन ● मिड-डे-मील के खाते का प्रबंधन ● ग्राम शिक्षा निधि के खाते का प्रबंधन ● बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी करना ● पोलियों कार्यक्रम में प्रतिभाग करना ● बीएलओ ड्यूटी में प्रतिभाग करना ● चुनाव ड्यूटी करना ● जनगणना करना ● संकुल की सप्ताहिक और बीआरसी की मासिक मीटिंग में भाग लेना ● अन्य विद्यालय अभिलेख तैयार करना ● विद्यालय की रंगाई पुताई कराना ● रैपिड सर्वे कराना ● बच्चों के आधार कार्ड बनवाना ● क्लर्क और चपरासी के काम भी करना ● अन्य सरकारी योजनाओं को लागू कराना

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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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