उत्तरप्रदेश

ज्ञान का स्तंभ नहीं बल्कि राष्ट्र रूपी रीढ़ की हड्डी होते हैं शिक्षक, सभी को करना चाहिए उनका समर्थन

शिक्षक जो समाज की नींव गढ़ने वाला अदृश्य शिल्पकार है आज खुद अस्थिरता और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है।

शिक्षक जो समाज की नींव गढ़ने वाला अदृश्य शिल्पकार है आज खुद अस्थिरता और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है। उच्च आदर्शों की अपेक्षा के बीच अधिकारहीनता की गहराई में डूबता शिक्षक अपनी कुर्सी और अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगा है। समाज, नीतियों और मीडिया के असहयोग ने उसकी आवाज को कमजोर बना दिया है। ऐसी स्थिति में शिक्षकों की पक्षधरता केवल न्याय की मांग नहीं बल्कि शिक्षा के भविष्य को बचाने का संघर्ष है। यह आवाज जरूरी है क्योंकि शिक्षक के बिना समाज का निर्माण अधूरा है। जब समाज, मीडिया और जिम्मेदार लोग शिक्षकों के साथ खड़े नहीं होते तो उनकी आवाज दब जाती है। ऐसे में शिक्षकों का पक्ष लेना और उनकी चुनौतियों को सामने लाना आवश्यक हो जाता है। यह पक्षधरता केवल शिक्षकों के लिए नहीं बल्कि समाज के लिए भी जरूरी है। यदि शिक्षक अपने कार्य में सशक्त होंगे तो समाज का भविष्य उज्ज्वल होगा। शिक्षक समाज के आधारस्तंभ होते हैं। शिक्षा, नैतिकता और समाज की प्रगति में उनका योगदान अनमोल है लेकिन क्या यह विडंबना नहीं है कि उसी शिक्षक को आज समाज, नीति और व्यवस्था के त्रिकोण में दोषों का पर्याय बना दिया गया है? शिक्षकों के प्रति पक्षधरता का यह सवाल उठाना सही है और इसकी तह तक जाना अत्यावश्यक।

एक समय था जब शिक्षक को समाज में गुरु का स्थान प्राप्त था। उनके लिए आदर्श स्थापित किए जाते थे और राजा से लेकर सामान्य जन तक उनका आदर करते थे लेकिन बदलते समय में वह सम्मान केवल अपेक्षाओं तक सीमित रह गया। आज का समाज शिक्षकों से आदर्शों की अपेक्षा करता है लेकिन उनके अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी नहीं देता। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज शिक्षक की प्राथमिकता अपनी नौकरी और कुर्सी बचाने तक सीमित हो गई है। वह आदर्श स्थापित करना चाहता है लेकिन उस पर आरोपों और जिम्मेदारियों का बोझ इतना अधिक है कि वह अपने आदर्शों को निभाने में बाधित हो जाता है। शिक्षक भी समाज का हिस्सा हैं और उनकी भी कमियां हो सकती हैं। यह स्वीकार करना आवश्यक है कि उन्हें भी अपग्रेडेशन और प्रशिक्षण की आवश्यकता है लेकिन क्या यह सही है कि किसी नीति, योजना या व्यवस्था की असफलता का सारा दोष शिक्षकों पर डाल दिया जाए। शिक्षा व्यवस्था में कई मुद्दे हैं अपर्याप्त संसाधन, अनियमित प्रशिक्षण और ऊपर से लगातार बदलती नीतियां। इन सबका परिणाम यह होता है कि शिक्षक अपने कार्य में पूरी क्षमता से योगदान नहीं कर पाते। समाज और मीडिया अक्सर उनकी आलोचना में आगे रहते हैं लेकिन जब उनके पक्ष में खड़ा होने का समय आता है तो चुप्पी छा जाती है। आज शिक्षकों के साथ खड़े होना समय की मांग है। यह केवल उनका समर्थन नहीं बल्कि शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास है। जब तक हम शिक्षकों को उनकी गरिमा और अधिकार नहीं देंगे तब तक शिक्षा नीति में सुधार संभव नहीं। शिक्षक नीति निर्माण के पिरामिड में सबसे नीचे खड़े हैं लेकिन उनकी समस्याओं, अधिकारों और आवश्यकताओं की अनदेखी करना लंबे समय तक समाज के लिए घातक होगा।

समाज, नीति और मीडिया के जिम्मेदार वर्गों को शिक्षकों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा। शिक्षक केवल आलोचना के पात्र नहीं हैं बल्कि वे सुधार, प्रोत्साहन और समर्थन के भी अधिकारी हैं। समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षकों के साथ खड़े होने, उनके अधिकारों और उनकी समस्याओं की आवाज बनने के लिए अग्रसर रहना चाहिए।

ये भी पढ़े-कानपुर देहात में ‘मिशन शक्ति’ की चौपाल: महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन पर जोर

राजेश कटियार,कानपुर

aman yatra
Author: aman yatra


Discover more from अमन यात्रा

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Related Articles

ADSUNIT KITCHEN
Back to top button

Discover more from अमन यात्रा

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading