नई पेंशन योजना सरकारी कर्मचारियों के लिए है घातक
दिल्ली के रामलीला मैदान में ओपीएस बहाली की मांग के लिए हुई सरकारी कर्मियों की रैलियों ने केंद्र सरकार को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। पुरानी पेंशन के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठनों को अब विपक्ष की तरफ से भी भरपूर समर्थन मिल रहा है। अब ओपीएस पर संभावित सियासी नुकसान से बचने के लिए डैमेज कंट्रोल की तैयारी हो रही है।
- नई पेंशन योजना शिक्षकों के हित में नहीं, कटौती की धनराशि भी हो जायेगी हजम
कानपुर देहात। दिल्ली के रामलीला मैदान में ओपीएस बहाली की मांग के लिए हुई सरकारी कर्मियों की रैलियों ने केंद्र सरकार को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। पुरानी पेंशन के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठनों को अब विपक्ष की तरफ से भी भरपूर समर्थन मिल रहा है। अब ओपीएस पर संभावित सियासी नुकसान से बचने के लिए डैमेज कंट्रोल की तैयारी हो रही है।
पुरानी पेंशन पर केंद्र एवं राज्यों के सरकारी कर्मियों की एक समान राय है। कर्मचारियों ने बिना गारंटी वाली एनपीएस योजना को खत्म कर ओपीएस को उसके मूल रूप में लागू करने की मांग कर रहे हैं। कर्मचारी संगठनों ने सरकार को स्पष्ट तौर से बता दिया है कि उन्हें बिना गारंटी वाली एनपीएस योजना को खत्म करने और परिभाषित एवं गारंटी वाली पुरानी पेंशन योजना की बहाली से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के बैनर तले एक अक्तूबर को पेंशन शंखनाद महारैली आयोजित की गई थी। इस रैली में केंद्र एवं राज्यों के लाखों कर्मियों ने शिरकत की थी। अब कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के बैनर तले 3 नवंबर को रामलीला मैदान में ही तीसरी रैली होने जा रही है। इस रैली में ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लाइज फेडरेशन सहित कई संगठन हिस्सा लेंगे।
सरकार का फार्मूला कर्मियों को मान्य नहीं-
पुरानी पेंशन को लेकर देशभर के सरकारी कर्मचारी एकजुट हो रहे हैं। इस मामले में विपक्षी दल भी कर्मचारी संगठनों के पक्ष में खड़े हैं। ऐसे में केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
सरकार को ओपीएस पर सियायत में जोखिम का भी अंदाजा है। यही वजह है कि अब एनपीएस में सुधार की बात हो रही है। राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए केंद्र सरकार अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई है लेकिन सरकारी कर्मचारियों का कहना है कि सरकार एनपीएस में सुधार कर कर्मियों को शांत करना चाहती है तो उसका कोई फायदा नहीं होगा। ये केवल गुमराह करने का प्रयास है। सरकारी कर्मियों को ओपीएस से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। अगर सरकार पुरानी पेंशन की तर्ज पर एनपीएस में लाभ देना चाहती है तो वह ओपीएस ही क्यों नहीं लागू करती। एनपीएस में कर्मियों का दस प्रतिशत हिस्सा कटता है।
इस बात का जवाब कोई नहीं देता कि रिटायरमेंट पर क्या ब्याज सहित यह राशि मिलती है। एनपीएस में न तो डीए और न ही पे रिवाइज का लाभ मिलता है। नए वेतन आयोग के गठन का भी एनपीएस पर असर नहीं होगा। ऐसे में एनपीएस के तहत अंतिम सेलरी कभी रिवाइज ही नहीं होगी।
छिपे हुए एजेंडे को आगे बढ़ा रही है सरकार-
शिक्षकों का कहना है कि ओपीएस देने से सरकार को कोई नुकसान नहीं है मगर यहां तो बात छिपे हुए एजेंडे की है। इस एजेंडे में सारा पैसा पूंजिपतियों के हाथों में जा रहा है। अगर सरकार ने डैमेज कंट्रोल के लिए एनपीएस में सुधार किया तो कर्मचारी संगठन उसे स्वीकार नहीं करेंगे। बता दें ओपीएस में 80 साल पार करते ही पेंशन में दस फीसदी इजाफा हो जाता है। अगर कोई 90 साल तक पहुंच रहा है तो उसकी पेंशन बीस प्रतिशत बढ़ जाती है। ओपीएस का आंदोलन अब पूरे देश में जोर पकड़ता जा रहा है। वित्त मंत्रालय ने इस मामले में जो कमेटी गठित की है उसमें ओपीएस का जिक्र ही नहीं है। उसमें एनपीएस में सुधार की बात कही गई है। नई दिल्ली में 20 सितंबर को हुई राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) स्टाफ साइड की बैठक के एजेंडे में ओपीएस का मुद्दा टॉप पर रहा था।
कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हुए अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी.श्रीकुमार का कहना है कि हमने सरकार के समक्ष एक बार फिर अपनी मांग दोहराई है। एनपीएस को खत्म किया जाए और पुरानी पेंशन योजना को जल्द से जल्द बहाल किया जाए। अगर सरकार ओपीएस लागू नहीं करती है तो सियासत के मोर्चे पर चोट की जाएगी। केंद्र एवं राज्यों के सरकारी कर्मियों और उनके परिजनों व रिश्तेदारों को मिलाकर वह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में जब यही संख्या वोट में बदलेगी तो केंद्र सरकार को कर्मियों की ताकत का अहसास होगा।