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दोनों पैर गवां चुके रमजान अली का जज्बा देख आप भी हो जायेंगे फैन

कड़कती ठण्ड हो या गर्मी का मौसम सीनियर सिटिजन के करीब पहुँच रहे ट्रेन दुर्घटना में अपने दोनों पैर गंवा चुके दिव्यांग रमजान अली पर मौसम का ज्यादा असर नहीं पड़ता है।

Story Highlights
  • रमजान अली चार सौ रोज कमाते है, तब परिवार चलाते है
  • उनका कहना है कि जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ
  • प निदेश सूचना से.नि. प्रमोद कुमार ने रमजान अली से दो गुब्बारे खरीदे और दो सौ रूपये देकर उसका हौसला बढया।

अमन यात्रा, लखनऊ। कड़कती ठण्ड हो या गर्मी का मौसम सीनियर सिटिजन के करीब पहुँच रहे ट्रेन दुर्घटना में अपने दोनों पैर गंवा चुके दिव्यांग रमजान अली पर मौसम का ज्यादा असर नहीं पड़ता है। मान्यवर कांशीराम जी ईको गार्डन मार्ग फतेहअली निवासी रमजान अली प्रतिशाम 7 बजे अपनी ट्राइसाइकिल को रंग-बिरंगे गुब्बारे से सजाकर ट्राइसाइकिल को स्वयं चलाकर पौन घण्टे का सफर सी.डी.ए. मिल्ट्री अस्पताल, मिल्ट्री कैन्टीन के आगे सूर्या हाल, एम.बेग क्लब के किनारे रात्रि 9.30 बजे तक लगभग 40 गुब्बारे बेचकर अपना व अपने परिवार जीवन यापन करते हैं।

रमजान अली कहते है, सादा जीवन जीता हूँ, उच्च विचार रखता हूँ। गाँधी, नेहरू, अटल, बाबा साहब डा. अम्बेडकर, ए.पी. कलाम को मानता हूँ। केन्द्र व प्रदेश सरकार अच्छी प्रगति व विकास हो रहा है। सरकार द्वारा एक हफ्ते पूर्व नई ट्राइसाइकिल भी मिली है, दिव्यांग पेंशन भी रेगुलर मिल रही है।

भावुक होते हुए वर्ष 2020 करीब 22 वर्ष पूर्व हो चुके हैं, को एक घटना याद करते हुए रमजान अली बताते है कि बुरी संगत नशेबाज दोस्त के चक्कर में पड़कर रेलवे फाटक में जबरदस्ती घुसने पर मोटरसाइकिल गिर गई जिसमें दोस्त का हाथ व मेरे दोनों पैर कट गये।

अपाहिज होने पर प्राइवेट काम-धन्धा जहाँ छूटा वहाँ आर्थिक स्थ्तिि खराब हुई। सरकार ने ट्राइसाइकिल दी जिससे मैं रंग-बिरंगे गुब्बारे बेचता हूँ, लगभग 40 गुब्बारे प्रतिदिन बेचकर लगभग 400 रूपये कमा लेता हूँ। पत्नी, एक बेटा, एक बेटी है। बेटी की शादी कर दी है जो अपने घर सकुशल है। बेटा व उसके बच्चे मेरे साथ रहते हैं। बेटा प्राइवेट स्कूल में चर्तुथ श्रेणी पर कार्यरत है। वो अधिक खर्चीला भी है, ऊपर वाले की कृपादृष्टि से मेरा घर ठीक-ठाक चल रहा है, लम्बे समय से गुब्बारे बेचने के कारण कैन्ट प्रशासन भी परेशान नहीं करता है, वहीं गुब्बारे के शौकीन बच्चे, लखनवी बड़े बुर्जुग, राहगीरों का प्यार मिलता रहता है। गाड़ियों को रोककर, पैदल चलकर मेरे गुब्बारे खरीदते है। कुछ भूले-भटके राहगीर वाहन चलाकर रास्ता भी पूछते है, उससे बड़ा सूकून मिलता की मैं किसी के काम आ सका, इस तरह एक गाइड का भी काम करता रहता हूँ। राहगीर थैक्स अथवा धन्यवाद कहते हुए अपने-अपने रास्ते चले जाते है!

जब रमजान अली से पूछा कि क्या कभी हज जाने की इच्छा होती है, उन्होंने महान शोमैन राजकपूर की हिट फिल्म की गीत गुनगुनाते हुए कहा, साहब जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ और कहा, भारत से अच्छा कहीं नहीं है ऐसा मेरा मानना है, भारत मेरा देश है यहाँ के सभी लोग अपने है, मुझे अपने देश की माटी पर गर्व है। जय हिन्द! रमजान ने कहकर अपनी बात खत्म की। उप निदेश सूचना से.नि. प्रमोद कुमार ने रमजान अली से दो गुब्बारे खरीदे और दो सौ रूपये देकर उसका हौसला बढया।

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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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