शिक्षा

टेट के मामले में शिक्षकों को कैसे मिलेगी राहत! इस पर करते हैं बात

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह के बयानों ने निश्चित ही लाखों शिक्षकों की व्यथा को स्वर दिया है। अवसाद ग्रस्त शिक्षकों की बीमारी को उन्होंने एक पल में खत्म कर दिया है।

कानपुर देहात। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह के बयानों ने निश्चित ही लाखों शिक्षकों की व्यथा को स्वर दिया है। अवसाद ग्रस्त शिक्षकों की बीमारी को उन्होंने एक पल में खत्म कर दिया है। यह स्वागतयोग्य है कि प्रदेश सरकार ने न केवल शिक्षकों की अनुभवी सेवाओं को सम्मान देने की बात कही है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रिवीजन दायर करने का भी स्पष्ट निर्देश दिया है। यह वही सशक्त नेतृत्व है जिसकी शिक्षकों को अपेक्षा रहती है जो उनके ज्ञान, उनके अनुभव और दशकों की सेवा को महज एक परीक्षा की कसौटी पर आँकने से रोक सके। इसके लिए प्रदेश के समस्त शिक्षक दोनों नेताओं का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं परंतु यहीं पर शिक्षकों को सतर्क रहने की आवश्यकता भी है क्योंकि टीईटी की अनिवार्यता का मूल प्रश्न राज्य सरकार के हाथों में सीमित नहीं है बल्कि केंद्र सरकार, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) और सुप्रीम कोर्ट के अधीन है। सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामों और पूर्व की अधिसूचनाओं ने कई बार शिक्षकों के हितों पर चोट की है और यह खतरा अभी टला नहीं है इसीलिए आज जब मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने सकारात्मक पहल दिखाई है तो शिक्षकों को इसे राहत मानकर चैन से नहीं बैठना चाहिए।
अब असली लड़ाई केंद्र, एनसीटीई और सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। जब तक वहां से स्पष्ट और ठोस कदम नहीं उठते तब तक प्रदेश के प्रयास अधूरे रह जाएंगे। इसलिए शिक्षकों को संगठित रहकर दबाव बनाए रखना होगा ताकि जिम्मेदार केवल बयानों पर न रुकें बल्कि अदालत और नीति-निर्माण की धरातल पर भी शिक्षकों की वर्षों की सेवा को न्याय दिला सकें। आए बयान उम्मीद जगाने वाले हैं लेकिन यह भी याद रखना है कि उम्मीद तभी हकीकत में बदलती है जब हम सतर्कता के साथ संघर्ष जारी रखते हैं।
क्या है समीक्षा याचिका-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अपने ही दिए गए फैसले की समीक्षा करने का अधिकार है।
इसका उपयोग तब होता है जब:
फैसले में स्पष्ट त्रुटि हो। नए तथ्य / साक्ष्य सामने आएं जो पहले उपलब्ध नहीं थे। न्यायिक सिद्धांत का पालन न हुआ हो।
सरकार किस आधार पर कोर्ट से संशोधन माँग सकती है-
यूपी सरकार की याचिका मुख्य रूप से इस आधार पर हो सकती है:
2011 से पूर्व नियुक्ति-
जब ये शिक्षक नियुक्त हुए थे तब टेट परीक्षा लागू ही नहीं थी इसलिए इनके लिए इसे लागू करना पूर्वव्यापी कानून जैसा होगा।
नियमित सेवा और अनुभव-
जो शिक्षक 10-15 साल से पढ़ा रहे हैं उनकी सेवा और अनुभव को ही योग्यता माना जाए। कोर्ट पहले भी कुछ मामलों में लंबे समय से सेवा दे रहे शिक्षकों को राहत दे चुका है।
शिक्षा व्यवस्था पर असर-
अगर एक साथ हजारों शिक्षकों को टेट अनिवार्य कर दिया गया और वे परीक्षा पास न कर सके तो स्कूलों में शिक्षक-संकट हो जाएगा।
राज्य का अधिकार-
केंद्र की एनसीटीई गाइडलाइन को लागू करना राज्यों का दायित्व है और राज्य सरकारें स्थानिक परिस्थितियों को देखते हुए अपवाद बना सकती हैं।
क्या कोर्ट संशोधन कर सकता है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट चाहे तो 2011 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों को पूर्ण छूट दे सकता है। या कह सकता है कि जिनका सेवानिवृत्ति तक 5 साल से कम समय बचा है केवल उन्हें छूट मिले (जैसा वर्तमान निर्णय में कहा गया है)।
या फिर कह सकता है कि राज्य सरकारें चाहें तो अनुभव आधारित वैकल्पिक परीक्षा / प्रशिक्षण आयोजित कर सकती हैं।
समीक्षा याचिका की सफलता की संभावना-
सामान्यत: सुप्रीम कोर्ट बहुत कम मामलों में अपने फैसले पलटता है लेकिन यदि सरकार यह साबित कर दे कि लाखों बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी या नियुक्ति-समय के नियम बदलकर पूर्वव्यापी रूप से लागू करना अनुचित है तो सुप्रीम कोर्ट कुछ राहत देने पर विचार कर सकता है। कुल मिलाकर कोर्ट समीक्षा याचिका में संशोधन कर सकता है पर ऐसा तभी होगा जब सरकार यह साबित कर पाए कि 2011 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर टेट लागू करना व्यावहारिक और न्यायसंगत नहीं है। इस आधार पर उन्हें या तो पूरी छूट मिल सकती है या सीमित छूट (जैसे 5 साल सेवा शेष हो तो ही टेट जरूरी)।
कुछ महत्त्वपूर्ण केस-लॉ के पुराने निर्णय) जहाँ शिक्षकों को टेट या योग्यता संबंधी मामलों में छूट / राहत दी गई थी।
मामला: यूपीटेट और नियुक्ति प्रक्रिया।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि नियम बनने के बाद जो नियुक्ति हुई है उन्हें नियम का पालन करना ही होगा लेकिन नियम बनने से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों को उससे छूट दी जा सकती है क्योंकि वे अपने समय के लागू नियमों के तहत वैध रूप से नियुक्त हुए थे।
मुद्दा: आरटीई एक्टट और एनसीटीई नोटिफिकेशन (2011) की वैधता।
इस केश में कोर्ट ने कहा था कि टेट न्यूनतम योग्यता है और प्रोस्पेक्टिव (भविष्य की नियुक्तियों) पर ही लागू होगी। इसका अर्थ यह निकला कि 2011 से पहले की नियुक्तियाँ टेट से स्वतः मुक्त हैं ।
आरटीई एक्ट की वैधता-
कोर्ट ने इस मैटर में कहा कि राज्य सरकारें स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए अपनी व्यवस्था बना सकती हैं।
इसका उपयोग राज्य सरकारें यह तर्क देने में करती हैं कि पुराने शिक्षकों को हम टेट से छूट दे सकते हैं।
हालिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी सेवारत शिक्षकों के लिए टेट अनिवार्य है पर जिनका सेवानिवृत्ति तक 5 साल से कम शेष है उन्हें रिलैक्सेशन मिल सकती है।
इन फैसलों से क्या संकेत मिलता है-
2011 से पहले नियुक्त शिक्षक पहले के केस (2014, 2018) में छूट मिलती रही है। 2011 के बाद नियुक्त शिक्षक उन्हें छूट का कोई आधार नहीं, टेट अनिवार्य है। हालिया फैसला (2025) पुराने शिक्षकों को भी टेट करना होगा लेकिन 5 साल से कम सेवा बची हो तो राहत मिलेगी। सरकार अगर अपनी समीक्षा याचिका में 2014 और 2018 के पुराने फैसलों को आधार बनाकर कोर्ट से यह कह सकती है कि 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को स्थाई छूट दी जाए।

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Author: aman yatra


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