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रोजगार परक शिक्षा में भारत फिसड्डी,शिक्षा का हो रहा है व्यवसायीकरण

शिक्षा मंत्रालय का एक हालिया अध्ययन बता रहा है कि साल 2012 से 2022 के बीच उच्च माध्यमिक कक्षाओं के लिए हर साल महज 14 फीसदी छात्रों ने कॉमर्स, यानी वाणिज्य विषय चुना। इन दस वर्षों में विज्ञान और कला विषय ज्यादा लोकप्रिय साबित हुए।

अमन यात्रा , कानपुर देहात। शिक्षा मंत्रालय का एक हालिया अध्ययन बता रहा है कि साल 2012 से 2022 के बीच उच्च माध्यमिक कक्षाओं के लिए हर साल महज 14 फीसदी छात्रों ने कॉमर्स, यानी वाणिज्य विषय चुना। इन दस वर्षों में विज्ञान और कला विषय ज्यादा लोकप्रिय साबित हुए। इन दोनों विषयों को चुनने वाले छात्रों का प्रतिशत 2012 में 31 (विज्ञान व कला दोनों के लिए) था जो 2022 में बढ़कर क्रमश 42 और 40 प्रतिशत हो गया। सवाल यह है कि आखिर किसी विषय की सार्थकता का पैमाना क्या है ? फिलहाल आकलन का आधार रोजगार है। हमारे तमाम शिक्षा कार्यक्रम रोजगार से जुड़े हुए हैं और जिन विषयों में रोजगार की संभावना ज्यादा होती है बच्चों का आकर्षण उनकी तरफ अधिक होता है।उदारीकरण के बाद कॉमर्स की तरफ काफी तेजी से रुझान बढ़ा था चूंकि बैंकिंग, मार्केटिंग, उद्यमशीलता जैसे तमाम क्षेत्रों से यह जुड़ा है और उदारीकरण के बाद इन क्षेत्रों का खासा विस्तार हुआ इसीलिए कॉमर्स को लाभ मिला। अब इसमें दाखिले की दर स्थिर हो गई है। हालांकि यह प्रवृत्ति अन्य विषयों में भी दिख रही है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में हजारों इंजीनियरिंग कॉलेजों या कंप्यूटर शिक्षा केंद्रों पर ताले लटक गए हैं। इन दिनों कानून, परफॉर्मिंग आर्ट, मनोविज्ञान जैसे विषय ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। अहम सवाल यह है कि भारत के विकास में हमराह बनने वाली शिक्षा आखिर कैसी होनी चाहिए। निस्संदेह नई तकनीक व प्रौद्योगिकियों की आमद ने अध्ययन-अध्यापन का विस्तार किया है। अब शिक्षक मेंटॉर बन गए हैं लिहाजा संबंधित विधाओं के सफल उद्यमी या व्यक्तित्व से बच्चों का सीधा वास्ता उनको प्रोत्साहित कर सकता है। यूजीसी ने भी विजिटिंग प्रोफेसरों के साथ-साथ पेशेवर लोगों को अकादमिक शिक्षा से जोड़ने की बात कही है। एक वक्त हमारी शिक्षा व्यवस्था बच्चे को सर्वप्रथम बेहतर नागरिक बनाने पर जोर देती थी। संस्थानों की भूमिका विद्यार्थियों के व्यक्तित्व-निर्माण की होती थी। मगर अब रोजगारोन्मुखी होने की वजह से हमें अपनी शिक्षा को कहीं अधिक सार्थक बनाना होगा।
इसके लिए सबसे पहले हमें दस से पांच वाली नौकरी को ही आजीविका मानने के बजाय वैकल्पिक उपायों की तरफ ध्यान देना होगा और यह तभी हो सकता है जब पढ़ाई के साथ-साथ दो-तीन अलग-अलग कौशल से बच्चों का परिचय कराया जाए। उनके लिए कृषि ऐसा ही एक वैकल्पिक क्षेत्र हो सकता है, क्योंकि भारत की करीब 60 फीसदी आबादी इस पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर है फिर भी रोजगार के लिए यह मुफीद नहीं समझी जाती। इसी तरह उद्यमशीलता भी आजीविका का बेहतर साधन बन सकती है। यूजीसी ने भी 30-35 ऐसे स्किल तय किए हैं जिन पर यदि शिक्षण संस्थानों में काम हो तो हम अपनी शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव के गवाह बन सकते हैं। हमें ऐसी राष्ट्रीय नीति की जरूरत है जो यह बताए कि किस क्षेत्र में कितने रोजगार की संभावना है और उसके हिसाब से कैसी शिक्षा बच्चों को दी जाए। अन्य देशों में शुरुआती स्तर पर ही यह पता कर लिया जाता है कि बच्चे की रुचि किसमें है। मगर अपने देश में बच्चों की मजबूत या कमजोर पक्ष को पहचानने और उसके अनुसार उन्हें ढालने का कोई तंत्र नहीं है। नतीजतन आईआईटी पास छात्र भी सिविल सेवा में जाने को लालायित दिखते हैं और चयनित होने वाले नौजवानों में उनकी संख्या अधिक रहती है। इस तरह जो क्षमता उन्होंने पूर्व में विकसित की होती है उसको निखारने के बजाय वे ब्यूरोक्रेट बन जाते हैं तो हमें सबसे पहले यही तय करना चाहिए कि कौन बच्चा किस रोजगार के लायक है। इससे अनुत्पादक नौजवानों की बढ़ती समस्या से भी हम पार पा सकते हैं।
ऐसे वक्त में जब नए विषयों की तरफ बच्चों का रुझान बढ़ा है हमें प्रौद्योगिकी से प्रेरित पठन-पाठन को आत्मसात करना होगा। इसमें कृत्रिम बुद्धिमता, यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद ली जा सकती है। एआई भविष्य का निर्धारक क्षेत्र है। इसकी मदद से हम आने वाले समय में शिक्षण और रोजगार के अवसरों की पड़ताल कर सकते हैं।
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AMAN YATRA
Author: AMAN YATRA

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